कमलनाथ, दिग्विजय के चंगुल से कांग्रेस मुक्त, जीतू कांग्रेस के नए कप्तान, उमंग नेता प्रतिपक्ष 

सब कुछ लुटा के होश में आए तो क्या ....

विजय  शुक्ला ,भोपाल।  देश के दो बड़े हिन्दी भाषी राज्य मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में हार के बाद कांग्रेस ने संगठन में बड़ा बदलाव करते हुए पूर्व विधायक जीतू पटवारी को मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी का नया अध्यक्ष नियुक्त किया है । आदिवासी नेता उमंग सिंघार को नेता प्रतिपक्ष बनाया गया है। पूर्व नेता प्रतिपक्ष रहे स्व. सत्यदेव कटारे  के बेटे हेमन्त उप नेता प्रतिपक्ष होंगे। पहली बार कांग्रेस ने युवा लीडरशिप को उभारने का मन बनाते हुए उन युवाओं को संगठन और विधानसभा सदन की कमान दी है जो निर्गुटी अर्थात सेल्फमेड लीडर हैं। जीतू पटवारी मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ तो उमंग सिंघार पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के धुर विरोधी माने जाते हैं। उमंग कई बार दिग्विजयसिंह की भूमिका पर सवाल उठाकर हमले करते रहे हैं।  हाईकमान ने इस फ़ैसले से कार्यकर्ताओं में नया संदेश और नई उर्जा भरने की कोशिश की है। हालांकि यह बहुत देर बाद उठाया गया कदम है। क्योंकि काँग्रेस दिग्गी-कमलनाथ के तले दबी हुई थी। मप्र की हार से शायद दिल्ली की नीदं टूटी है और दिग्गी-कमलनाथ से मोह खत्म हुआ है। जिनकी मनमानी और अपनी चलाने के चक्कर मे पार्टी को भारी क्षति उठानी पड़ी है। कांग्रेस ने 15 साल बाद किसी तरह से 2018 के विधानसभा चुनाव में सरकार बनाई लेकिन पुत्रमोह के कारण सरकार 15 महीने बाद गिर गई। इतिहास सरकार गिरने का दोष ज्योतिरादित्य सिंधिया पर अवश्य मढेगा लेकिन हकीकत में इसके असल जिम्मेदार कमलनाथ और दिग्विजयसिंह ही कहे जाएंगे। जिनकी कूटनीति से दुःखी होकर सिंधिया को कांग्रेस छोड़कर भाजपा में जाने को विवश होना पड़ा। दिल्ली दरबार ने इन्हीं नेताओं द्वारा पढ़ाई पट्टी पर भरोसा किया । यदि ज्योतिरादित्य सिंधिया को सुरक्षित राज्यसभा सीट दे दी जाती तो वे कांग्रेस छोड़कर नहीं जाते। उन्हें प्रदेश अध्यक्ष के लायक भी नहीं समझा गया। हालांकि 2018 में कांग्रेस की सरकार बनाने में सिंधिया का योगदान सबसे अधिक था। उन्हें मुख्यमंत्री न बनाकर हाईकमान ने सबसे बड़ी भूल की। जिसका प्रायश्चित सात जनम लेकर भी नहीं हो पायेगा। जीतू पटवारी विधानसभा चुनाव हार गए हैं। वे युवा कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रहे हैं।   संगठन  चलाने का अच्छा अनुभव रखते हैं। पूरे प्रदेश में उनकी टीम है। उमंग की बुआ पूर्व उपमुख्यमंत्री स्व.जमुना देवी के भतीजे हैं। जमुना देवी नेता प्रतिपक्ष भी रह चुकीं हैं। इस युवा जोड़ी के पास लोकसभा चुनाव की सबसे बड़ी चुनौती है। जिसका मुकाबला मोदी मैजिक और भाजपा के मजबूत संगठन से होगा। पटवारी और उमंग कांग्रेस नेता राहुल गांधी की टीम के करीबी सदस्यों में गिने जाते हैं। कांग्रेस के लिए लोकसभा चुनाव से ज्यादा बड़ी चुनौती संगठन को नए सिरे से खड़ा करने की रहेगी। साथ ही 2023 विधानसभा चुनाव में मिले 40 फीसदी वोट शेयर को लोकसभा चुनाव में सहेजकर रखने की होगी। जीतू पटवारी पिछड़े वर्ग से आते हैं तो  उमंग युवा आदिवासी चेहरा हैं। हेमंत कटारे ब्राह्मण चेहरा हैं जिन्होंने विधानसभा चुनाव में पूर्ववर्ती शिवराज सरकार में  कद्दावर  मंन्त्री रहे अरविंद भदौरिया को हराया है। नेता प्रतिपक्ष के लिए वरिष्ठ विधायक अजय सिंह, राम निवास रावत, बाला बच्चन और राजेंद्र कुमार सिंह दावेदार थे। अतः इन वरिष्ठ विधायकों को भरोसे में लेकर जीतू- उमंग को चलना होगा। विडंबना की बात है कि हाईकमान ने राम निवास रावत को कभी महत्व देने पर विचार नहीं किया जबकि उन्होंने सिंधिया के साथ भाजपा में न जाकर पार्टी के प्रति अपनी अटूट निष्ठा निभाई। वे चाहते तो सिंधिया के साथ जाकर भाजपा सरकार में आसानी से मंत्री बन सकते थे। पर उन्होंने ऐसा नहीं किया। जीतू पटवारी के पास नई कांग्रेस तैयार करने का सुनहरा मौका है बशर्ते वह गुटबाजी को बढ़ावा देने वाले नेताओं की कम  सुनें। लंबे समय से मप्र में कांग्रेस की स्थिति ऐसी थी मानो वह दिग्विजय - कमलनाथ की जागीर हो। निसंदेह इनसे पिंड छुड़ाकर कांग्रेस हाईकमान ने ठीक ही किया है। अब कमलनाथ के पास दिल्ली जाने का रास्ता है । सम्भव है हाईकमान के इस फैसले के बाद वे विधायकी का पद त्याग कर बेटे नकुल नाथ का प्रवेश कराने की सोंचे और खुद लोकसभा चुनाव लड़ने का इरादा करें।  सच कहें तो यह समय  दिग्विजय -कमलनाथ के राजनीतिक सन्यास के लिए उत्तम है। डॉ गोविन्द सिंह, केपी सिंह, राजकुमार पटेल, मुकेश नायक समेत कई वरिष्ठ नेता चुनाव हार चुके हैं। जिन्हें आगे मौका मिलने की कोई गारन्टी नहीं है।  बड़ा सवाल यह है  वरिष्ठ नेता सुरेश पचौरी, अरुण यादव के लिए कांग्रेस में कितनी गुंजाइश रह गई है ? 

कांग्रेस हाईकमान  ने छत्तीसगढ़ में पूर्व विधानसभा अध्यक्ष चरण दास महंत को नेता प्रतिपक्ष बनाया है। जबकि दीपक बैज को प्रदेश अध्यक्ष के पद पर बरकरार रखा गया है। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को पूरी तरह छत्तीसगढ़ की राजनीति से से हटा दिया गया है। महादेव एप घोटाले में नाम जुड़े होने के कारण ऐसा किया गया है। जिससे मामला तूल न पकड़े और किरकिरी न हो। भूपेश ने हाईकमान  को अंधेरे में रखा। 

न्यूज़ सोर्स : विजय मत