महाराष्ट्र में कुर्सी की लड़ाई; एक तरफ कुंआ दूसरी तरफ खाई
भाजपा को फड़नवीस से ज्यादा एकनाथ की जरूरत है
"निसन्देह भाजपा को महाराष्ट्र में मिली शानदार जीत में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के एक हैं तो सेफ है के नारे की अहम भूमिका रही है। इस नारे ने सनातनियों में हिन्दुत्व की अलख जगाई। " लेकिन केवल इतना ही पर्याप्त नहीं था। संभवतः एकनाथ शिन्दे यही सोचकर मुख्यमंत्री पद पर अपना दावा नहीं छोड़ रहे हैं । यह जानते हुए कि उनका दावा गठबंधन धर्म के प्रतिकूल है।
विजय शुक्ला।
साला झुकेगा नहीं....। दक्षिण फ़िल्म पुष्पा के इस डायलॉग के इर्दगिर्द महाराष्ट्र में नई सरकार का गठन अटका हुआ है। कोई झुकने को तैयार नहीं है। शिन्दे शिवसेना सेना प्रमुख एवं राज्य के कार्यवाहक मुख्यमंत्री एकनाथ शिन्दे यदि दूसरी बार मुख्यमंत्री नहीं बन पाए तो उप मुख्यमंत्री भी नहीं बनेंगे। सम्भावना कम है फिर भी ऐसी स्थिति आई भी तो एक ही शर्त पर जब देवेन्द्र फडणवीस को मुख्यमंत्री न बनाया जाए।
वैसे महाराष्ट्र में भाजपा ने अभी तक विधायक दल का नेता नहीं चुना है,जिसे देखकर देवेन्द्र फडणवीस की दावेदारी पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। इसे शिन्दे फैक्टर से सीधे जोड़ा जा सकता है। सरकार का कार्यकाल पूरा होने तथा नई सरकार के गठन की प्रक्रिया के बीच एकनाथ शिन्दे ने मंगलवार को मुख्यमंत्री पद से राज्यपाल को अपना इस्तीफा सौंपने की संवैधानिक प्रक्रिया पूरी कर दी। नई सरकार बनने तक अब वे कार्यवाहक मुख्यमंत्री रहेंगे। मुख्यमंत्री बनने का मोह फिलहाल न तो वे छोड़ने को तैयार हैं और ना ही देवेन्द्र फडणवीस। रही बात अजीत पवार की तो वे हर स्थिति में फायदा उठा रहे हैं। उनका डिप्टी सीएम बनना तय समझिए। कश्मकश एकनाथ बनाम फडणवीस पर चल रही है। अन्तिम निर्णय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह को लेना है। पर ले कैसे ? समझ मे नहीं आ रहा। एकनाथ को नाराज करके भाजपा का शीर्ष नेतृत्व कोई निर्णय नहीं लेना चाहेगा क्योंकि 40 साल का सफर तय करने के बाद आज उसे महाराष्ट्र की राजनीति में बड़े भाई का ओहदा जनता से मिला है। जी हां , भाजपा को विधानसभा में 133 सीटें पहली बार मिली हैं। 2019 के चुनाव में 126 आईं थीं। तब एकनाथ के भरोसे उद्धव ठाकरे की सरकार को गिरा पाए थे। और एनडीए गठबंधन सरकार बनी थी। दरअसल, मुख्यमंत्री चयन में जो सबसे बड़ी अड़चन आ रही है वह मराठा वोटबैंक है। एकनाथ मराठा हैं। मराठा आरक्षण की आग उन्ही की वजह से अभी तक ठंडी पड़ी है। बाला साहेब ठाकरे के जीते जी भाजपा मराठियों को अपनी ओर नहीं ला पाई । अलबत्ता महाराष्ट्र में वह ठाकरे परिवार के सहारे ही जमीन तैयार करती रही। बाला साहेब का दबदबा कायम रहा। लेकिन दुनिया छोड़ने के बाद उनके उत्तराधिकारी पुत्र उद्धव ठाकरे एनडीए से झगड़ बैठे। मुख्यमंत्री पद के लिए दशकों की दोस्ती पलभर में तोड़ दी। और उनकी पार्टी के कार्यकर्ता महज ऑटो ड्राइवर एकनाथ शिंदे ने मुख्यमंत्री बनकर उद्धव ठाकरे को नीचे पटक दिया। ठाकरे परिवार से खुली लड़ाई लड़ी। भाजपा ऐसे लड़ाकू हिम्मती शिंदे को नाखुश कैसे करे। आगे की राजनीति भी तो करनी है। बीएमसी चुनाव भी होने हैं। कोई भी चूक भाजपा के लिए नई चुनौती बन सकती है। अभी तो आधी लड़ाई लड़ी है। जब तक उद्धव ठाकरे और शरद पवार हैं, एकनाथ को नाराज़ करना उचित नहीं है। 57 सीटें लाकर उन्होंने अपना लोहा मनवाया है। कुछ इसी तरह का सोच विचार दिल्ली कर रही होगी। एकनाथ ने 3 साल सरकार भी निर्विवाद चलाई। गठबंधन धर्म पालन में भाजपा का कोई तोड़ नहीं है। इसलिए मोदी कोई नई राह खोज रहे होंगे। वरना फडणवीस को मुख्यमंत्री बनाना होता तो इतनी देर नहीं लगाते।
सूत्रों की माने शिन्दे
सालभर मुख्यमंत्री पद पर बने रहना चाहते हैं। दलील है सरकार उनकी योजना और रणनीति से बनी है इसलिए मौका दिया जाए। खुलकर बोलने से बच रहे हैं। खुद गम्भीरता ओढ़े हुए हैं और समर्थकों की मांग जारी है। लगता है यह सब चाल देवेन्द्र फडणवीस को रोकने के लिए अपनाई गई है। शिन्दे समर्थकों को अन्तिम रास्ता यही दिख रहा है। एकनाथ शिन्दे जानते हैं यदि आज कमजोर पड़ गए तो उद्धव और शरद पवार से पांच साल तक अपनी पार्टी के विधायकों, कार्यकर्ताओं को बचाये रखने की कड़ी चुनौती होगी। अजीत पवार तो यही चाहते हैं कि एकनाथ हटें जिससे मराठा नेतृत्व शिन्दे से निकलकर उनके पास आ जाये। शिन्दे यह भी जानते हैं कि यदि महाराष्ट्र में भाजपा को मराठों का वोट चाहिए तो उद्धव ठाकरे और अजीत पवार की काट केवल वही हैं। उन्हें और भाजपा को परस्पर जरूरत पड़ेगी ही। 133 सीट आने के बाद से फडणवीस उन्हें छोटा भाई दिखाने में लगे हैं। प्रधानमंत्री सब समझ और देख रहे हैं। इन्ही कारणों से किसी तरह की जल्दबाजी से बचा जा रहा है। भाजपा नेता,कार्यकर्ता नहीं चाहते फिर भी शिन्दे को मोदी मुख्यमंत्री बनने का आशीर्वाद यदि दें तो कोई अचम्भा नहीं होगा। फडणवीस राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पसंद हैं और वह उन्हें मुख्यमंत्री देखना भी चाहता है लेकिन मोदी-शाह की जोड़ी क्या ऐसा चाहेगी ? थोड़ा संदेह है। अव्वल तो शिन्दे को मुख्यमंत्री से कम मंजूर नहीं होगा और यदि ऐसा न हो पाया तो अपनी जगह किसी करीबी को उप मुख्यमंत्री बनवा सकते हैं। बेटे को उपमुख्यमंत्री बनाने की गलती नहीं करेंगे। हाँ, कैबिनेट मंत्री बनवा सकते हैं। शिन्दे आनंद दिघे के शिष्य हैं। न झुकेंगे और ना अपने कद को कभी घटने देंगे। शिन्दे को मुख्यमंत्री पद देना है तो बहुत मुश्किल पर असम्भव भी नहीं। उन्हें रोकने के लिए मोदी कोई तीसरा ऑप्शन भी दे सकते हैं। कहानी बस यहीं अटकी हुई है। जिसका सार फ़िल्म पुष्पा के चर्चित डायलॉग "साला झुकेगा नहीं " वाला है। कोई झुकने को तैयार नहीं है।