बंग्लादेश से सबक नहीं सीखा तो पछतायेंगे हिंदू
शेख हसीना को शरण देकर भारत ने क्या सही किया ?
विजय शुक्ला।
भारत के इस साहसिक फैसले को दुनिया भर में एक मिसाल के रूप में हमेशा देखा और सराहा जाता रहेगा। इस निर्णय को लेने वाली मोदी सरकार ने दुनिया को बता दिया है कि इक्कीसवीं सदी का भारत डरपोक, पिछलग्गू,स्वार्थी और अवसरवादी राष्ट्र नहीं है। क्या विपक्षी दल मोदी सरकार पर मुस्लिम विरोधी होने का आरोप लगा सकते हैं ?
बंग्लादेश से जान बचाकर भारत में सुकून से जी रहीं पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को शरण देना कोई साधारण बात नहीं थी। जब दुनिया के लगभग सभी देशों ने उनकी मदद की गुहार ठुकरा दी हो,ऐसी स्थिति में उन्हें शरण देना किसी भी देश के लिए विश्व के समक्ष चुनौती देने जैसा बड़ा दुस्साहस कहा जा सकता है। भारत ने दुनिया के तमाम देशों के रुख की परवाह किये बिना शेख हसीना को पूरी मदद देने की संकल्पशक्ति दिखाकर उन इस्लामिक मुल्कों को आईना दिखाया है जो भारत पर मुस्लिम विरोधी होने का हमेशा आरोप लगाते रहे हैं। एक मुस्लिम महिला के प्राणों को संकट में देखकर भारत ने बता दिया है कि सनातन धर्म सबके लिए है। और भारत की दृष्टि में सब सनातन हैं। भारत ने सिर्फ पड़ोसी मित्र बंग्लादेश की निर्वासित प्रधानमंत्री शेख हसीना भर की रक्षा नहीं की है बल्कि समूची नारी जाति के स्वाभिमान, सम्मान और उनके नारीत्व की लाज बचाने का धर्म निभाया है। रक्षबन्धन पर्व के अवसर पर मुस्लिम महिलाओं के लिए मोदी सरकार का इससे बड़ा उपहार भला और क्या हो सकता है ? हमारी सनातन संस्कृति विश्व बंधुत्व, विश्व शान्ति की रक्षा के लिए अनेकों बार प्राणों का बलिदान दे चुकी है। यह अलग बात है कि भारत को अपने इस भावनात्मक अतिरेक की बड़ी कीमत चुकानी पड़ी है। आगे पड़ती रहेगी किंतु भारत अपनी महानतम सोच त्याग नहीं सकता। विपक्षी दलों ने शेख हसीना मामले में केंद्र की मोदी सरकार के साथ रहने फैसला कर अच्छा काम किया है। लेकिन बंग्लादेशी हिन्दुओं पर हो रहे अमानुषिक अत्याचारों को लेकर उसकी चुप्पी सोचनीय है? सुप्रीम कोर्ट द्वारा एक अगस्त को आरक्षण वर्गीकरण से जुड़ा एक निर्णय आते ही कांग्रेस,सपा,बसपा,टीएमसी समेत
कई राजनीतिक दलों एवं उनके नेताओं ने आसमान को सिर पर उठा लिया है लेकिन हिन्दुओं पर हो रहे जुल्म,कत्लेआम पर कोई बोलने को तैयार नहीं है? यह शर्मनाक स्थिति है। केन्द्र सरकार ने इस पर विशेष कमेटी बनाई है। हिन्दुओं की चिन्ता और सुरक्षा के प्रयास किये जा रहे हैं।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने इस पर गहरी चिन्ता जताते हुए केन्द्र सरकार से हिन्दुओं की सुरक्षा सुनिश्चित किये जाने का आग्रह किया है। बंग्लादेश सीमा से सबसे समीप पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इस मुद्दे पर मौन हैं। विपक्ष की इस मुद्रा को हिन्दू
क्या समझें ? भारत की नीति दोगली और अवसरवादी नही है। जो अपने नफा-नुकसान की सोचकर धर्म पालन करे।
भारत के पड़ोसी देश बंग्लादेश में जिस तरह का सत्ताविरोधी हिंसक तथाकथित छात्र आंदोलन हुआ उससे मानवता का सिर शर्म से झुक गया है। वहां जो कुछ हुआ वह आज की युवा पीढ़ी के लिए जरूर नया है किंतु भारत के लिए यह पुराने इतिहास की पुनरावृत्ति के अतिरिक्त कुछ नहीं है । भारत जिसे हम भारत मां के नाम से पुकारते हैं, उसने ऐसे दारुण दृश्य अनेकों बार देखे हैं और उसकी असहनीय पीड़ा सही है । कभी पाकिस्तान,मालदीव और अफगानिस्तान, भारत मां के शरीर का ही हिस्सा हुआ करते थे लेकिन बारी-बारी से खण्डकाल में इनका बंटवारा होता चला गया। अखंड राष्ट्र भारत को बांटने वाली जेहादी, अलगाववादी ताकते भारत पर हजारों वर्षों से गिद्ध दृष्टि लगाए चल रही है। मुगलिया आक्रांताओं के रूप में 1500 सदी में सामने आया था । मोहम्मद गौरी, बाबर, औरंगजेब, शाहजहां से लेकर अकबर तक के शासनकाल में भारत की सांस्कृतिक विरासत, सनातन संस्कृति को तहस नहस किया गया। खजाने लूट गए, हिंदुओं पर अत्याचार की सारी सीमाएं छोटी पड़ गई । बहन बेटियों की आबरू लूटी गई । तलवारों की नोक पर हिंदू ,सिख, जैनों के धर्म बदलवाए गए । धार्मिक, शैक्षणिक संस्थाओं एवं मंदिरों को तोड़ा गया। लगभग यही घटनाक्रम पाकिस्तान, अफगानिस्तान के बंटवारे में भी दुनिया ने देखा और आज यही सब पड़ोसी देश बांग्लादेश में दिखाई दे रहा है । वहां जिहादी ताकतों ने पर्दे के पीछे रहकर नौजवान पीढ़ी को भरमायाग - उकसाया और अनाप-शनाप फंड देकर युवाओं को अपनी ही सरकार के खिलाफ सड़कों पर हिंसक विद्रोह के साथ तख्तापलट कराने में सफल भी हो गए। भीड़ की शक्ल में उतरे छात्रों ने किताब कलम फेंक कर हाथों में पत्थर उठा लिए। अपने देश की लाखों करोड़ की संपत्ति को आग लगा दी। बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना को देश छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा। आरक्षण को ढाल बना विरोध कर रहे युवा इतने अंधे हो गए की बांग्लादेश की आजादी के प्रतीक बंगबंधु मुजीब उर रहमान की प्रतिमा को तोड़ डाला। उनकी बेटी शेख हसीना के प्रधानमंत्री निवास में घुसकर लूटपाट की। सबसे शर्मनाक घटनाक्रम यह देखने को मिला कि हिंसक छात्र शेख हसीना की अंडर गारमेंट्स, ब्लाउज, ब्रा को मोबाइल कैमरे पर लहराते हुए नजर आए । ऐसा करने वाले छात्र बांग्लादेशी नहीं हो सकते। ऐसा लगा मानो सेना भी दंगाइयों के साथ मिल गई हो । बांग्लादेश में रह रहे हिंदुओं के मंदिरों को तोड़ा गया । कत्लेआम में कई हिंदू मारे गए । उनके घरों को जला दिया गया । शेख हसीना सरकार से गुस्साई भीड़ ने कलाकारों, लेखकों पत्रकारों, गायको किसी को नहीं बक्शा । अब वे आंदोलनकारी छात्र बांग्लादेश के पुनर्निर्माण की बात कह रहे हैं। क्या बांग्लादेश के स्वर्णिम इतिहास को पैरों में रौंदने के बाद उसके पुनर्निर्माण की कल्पना की जा सकती है ? जिस राष्ट्र के छात्र अपना इतिहास मिटाने पर आमादा हों, वे नया निर्माण कभी नहीं कर पाएंगे। बांग्लादेश में अंतरिम सरकार भले हो लेकिन उसका भविष्य अस्थिरता पूर्ण रहेगा । यह कैसी युवा शक्ति है बांग्लादेश में , जिसने अपने राष्ट्र संस्थापक की मूर्ति तोड़ी। ऐसी घटिया सोच वाली युवा शक्ति बांग्लादेश को कभी सुरक्षित भविष्य नहीं दे सकती । सब जानते हैं बांग्लादेश में तख्तापलट के पीछे कौन-कौन से देश हैं । जरा सोचिए, शेख हसीना के अंडर गारमेंट्स के साथ जब ऐसा व्यवहार किया गया तो यदि उन्होंने देश नहीं छोड़ा होता तो आंदोलनकारी छात्र पिता मुजीबुर रहमान की तरह उनकी हत्या निश्चित हो सकती थी। भारत ने शेख हसीना को शरण देकर एक सच्चा पड़ोसी मित्र होने का धर्म निभाया है । खास बात यह कि प्राण संकट की स्थिति में शेख हसीना ने मुस्लिम देशों पर भरोसा ना करते हुए भारत पर भरोसा किया। संकट की घड़ी में अमेरिका ने शेख हसीना का वीजा कैंसिल कर दिया। जेहादी दवाब के चलते कोई भी देश उन्हें शरण देने को जब तैयार नहीं है, ऐसे वक्त में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार ने उनकी रक्षा की संपूर्ण जिम्मेदारी लेकर एक शानदार मिसाल दी है। अंतरराष्ट्रीय दबाव तो भारत पर भी कम नहीं रहा होगा , लेकिन भारत ने अतिथि देवो भव , बसुधैव कुटुंबकम के मंत्र को अपनाते हुए सनातन धर्म का परिचय दिया है। चीन से निर्वासित दलाई लामा सालों से भारत में शरण लिए हुए हैं। विपक्षी दल शेख हसीना मामले को मोदी सरकार की कूटनीतिक भूल समझें किंतु मोदी ने एक मुस्लिम महिला के प्राणों की रक्षा कर दुनिया भर की महिलाओं के नारीत्व की रक्षा की। क्या अब कोई यह कह सकता है कि मोदी सरकार मुस्लिम विरोधी है ? जब दूसरे देश की मुस्लिम महिला प्रधानमंत्री यह बात समझ सकतीं हैं तो फिर भारत हम कब समझेंगे।