उद्योगों का विकेंद्रीकरण समग्र विकास की पहली शर्त 

विजय शुक्ला 

देश में पहली बार किसी राज्य सरकार ने रीजनल इंड्रस्ट्री कॉन्क्लेव ( क्षेत्रीय निवेशक सम्मेलन) से मप्र में निवेश और रोजगार पैदा करने की हिम्मत दिखाई है । उज्जैन में  हुई पहली  रीजनल इंड्रस्ट्री कॉन्क्लेव में 12 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का निवेश प्रस्ताव आना अच्छा शगुन है।  एक कॉन्क्लेव  जबलपुर में हो चुका है और  आगामी 28 अगस्त को ग्वालियर में होने वाली  कॉन्क्लेव से सबको बड़ी उम्मीद है। मोहन सरकार का लक्ष्य एक लाख करोड़ रुपये  निवेश लाने का है। सरकार की अनूठी पहल बड़े परिणाम की आशा जगाती है। 
मुख्यमंत्री मोहन यादव  धीरे और  सधे हुए क़दम बढ़ाकर चलना चाहते हैं। ताकि हर कदम मील का पत्थर बने। यह अच्छी सोच है। वे झूठा  ढिंढोरा पीटने से बच रहे हैं। दरअसल, वे यह जानते हैं कि यह एक आंदोलनकारी प्रयास है।  रीज़नल इंड्रस्ट्री  कॉन्क्लेव में निवेशकों को बिना देर सरकार भूमि आवंटित कर रही है। मप्र एक कृषि प्रधान राज्य है। 60-70 फीसदी आबादी कृषि पर निर्भर है। लेकिन जल,जमीन, जंगल, खनिज, पर्यावरण, पर्यटन, पुरातत्व एवं श्रम संशाधन शक्ति की यहां कोई कमी नहीं है।  पीएम श्री वायुसेवा शुरू करने से पर्यटकों के साथ  निवेशकों की पहुंच आसान हो गई है। मध्यप्रदेश में लघु एवं कुटीर उद्योगों के लिए अपार संभावनाएं हैं। सरकार जानती है कि विकसित राज्य बनने के लिए आद्योगिक  वातावरण का विकास बहुत आवश्यक है। परन्तु  इसके लिए ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बूस्टर डोज चाहिए। दरअसल,  सरकार ने जो करीब सवा लाख एकड़ का  जो लैंड बैंक  बनाया है वह शहरों की पहुंच से या तो बहुत दूर है या पिछड़ा हुआ है। जहां निवेशक जाने से कतराते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी ढांचा सड़क, पानी, बिजली आदि दुरुस्त करने से निवेशक तैयार हो सकते हैं। जमीनें ग्रामीण क्षेत्रों में बची हुई है। शहरों में इनकी कीमत बहुत बढ़ गई है। इसलिए सरकार को अपना लैंड बैंक बढ़ाना होगा।   मौजूदा समय की बात करें तो मध्यप्रदेश के देवास,पीथमपुर, गोविंदपुरा और मंडीदीप में सर्वाधिक उद्योग इकाइयां संचालित हैं । ये सभी मिलकर आद्योगिक अर्थव्यवस्था में करीब 83 प्रतिशत योगदान देते हैं। आंकड़ें बताते हैं कि 2011-12 में राज्य की जीडीपी में 27 फीसदी योगदान सिर्फ उद्योगों से आया जो 2020-21 में घटकर 19 फीसद हो गया। कृषि का योगदान भी घटता जा रहा है। ग्वालियर के मालनपुर में काफी पहले सैकड़ों उद्योग इकाइयां स्थापित हुईं थीं जो बदइंतजामी, असुरक्षित माहौल तथा सरकारी विभागों के असहयोग के चलते बन्द हो चुकी हैं।  इनकी सहूलियत व  सुरक्षा बढ़ानी होगी। 
औद्योगिक आत्मनिर्भरता के मामले में मध्यप्रदेश राज्य के आंकड़े तुलनात्मक दृष्टि से गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान और उत्तरप्रदेश जैसे शक्तिशाली राज्यों से प्रतिस्पर्धी जरूर हैं मगर अपनी पीठ थपथपाने लायक नहीं हैं । पिछली सरकारों ने राज्य में  औद्योगिक क्रांति लाने के जितने प्रयोग एवं प्रयास किए उसमें हकीकत कम आत्ममुग्धता अधिक नजर आई।  कड़वा सच है कि भारत के केन्द्र में होने की भौगोलिक स्थिति ने उद्योग घरानों को  मध्यप्रदेश में निवेश करने को मजबूर किया है। सरकारी आंकड़ें बताते हैं कि राज्य की निर्यात क्षमता जो वर्ष 2003-04 में मात्र 6 हजार करोड़ थी वह 2022-23  आते करीब 66 हजार करोड़  पार कर चुकी है। हालांकि पिछले दो दशक में सरकार की इच्छाशक्ति में नजर आई कमी ने  निवेश को हतोत्साहित किया, जिसके चलते 
औद्योगिकीकरण की 
 रफ़्तार कमजोर पड़ी। इसका असर यह हुआ कि 2023 की ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट में भाग लेने आये देश -विदेश के उद्योगपतियों ने  निवेश के बड़े बड़े दावे कर अखबारों की सुर्खियां बटोरीं लेकिन पिछले दरवाजे से भाग खड़े हुए। दरअसल, निवेशकों को समय पर सहुलियतेँ नहीं मिलीं । इसकी एक और बड़ी वजह इनका केवल महानगरों तक सीमित होना भी है। तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने आद्योगिक निवेश लाने में प्रयास किए। 
दरअसल, औद्योगिक विकास के लिए उसका विकेंद्रीकरण नितांत आवश्यक माना जाता है।  मोहन सरकार उद्योगों का विकेंद्रीकरण कर नए स्थानों को विकसित करने का प्रयास कर रही है जो समग्र औद्योगिक विकास के लिए आवश्यक कदम है। 
बहरहाल, मप्र में आद्योगिक निवेश का नया वातावरण बनाने की दिशा में डॉ मोहन यादव के नेतृत्व वाली सरकार ने काम करना शुरू कर दिया है। 2 मार्च को  मुख्यमंत्री मोहन यादव ने अपने गृह जिले उज्जैन से इसकी शुरुआत की । इसमें दो प्रमुख बातें रहीं।पहला परम्परागत रूप में  महानगरों से बाहर निकलकर सरकार ने उन जिलों पर फोकस किया जिन्हें औद्योगिक विकास के लिए उपयुक्त नहीं समझ गया तो दूसरी खास बात यह कि बड़े उद्योग घरानों के साथ छोटे स्थानीय उद्यमियों को आमंत्रित कर सरकार ने उनका आत्मविश्वास बढ़ा दिया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी तो वोकल फॉर लोकल कहते हैं। मोहन यादव धीरे किंतु सधे हुए कदम चलकर  बूँद -बूंद  से निवेश कुम्भ (घड़ा) भर रहे हैं। ।। 
सरकार को चाहिए कि वह नए उद्योगों एवं निवेशकों को महत्व दे लेकिन पुराने उद्योगों को प्रोत्साहित भी करती रहे। औद्योगिक इकाइयों के आसपास बस्तियां बसाने की अनुमति नहीं देनी चाहिए। मध्य प्रदेश सोयाबीन, चना, दाल, सौर ऊर्जा, पर्यटन एवं सांस्कृतिक धरोहरों के क्षेत्र में निवेश, अनुसंधान एवं विकास से ग्लोबल लीडर बन सकता है। कर्ज में डूबते मध्यप्रदेश को यदि बचाना है तो उसके लिए नए उद्योग लगाकर उन्हें ताकत देनी होगी। सम्भाग स्तर पर इन्वेसर्स मीटिंग से मोहन सरकार ने सार्थक पहल की है। 

न्यूज़ सोर्स : विजय मत