मप्र: मोहन यादव को CM बनाने के पीछे की स्क्रिप्ट किसने लिखी ?

"कांग्रेस पार्टी ने यदि सुभाष यादव को मुख्यमंत्री बनाने का निर्णय लिया होता तो क्या भाजपा आज मोहन यादव को मुख्यमंत्री बनाने का फ़ैसला करती ? "
संघ के स्वयंसेवक को मप्र की कमान,विंध्य को सम्मान
मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री पद को लेकर पिछले कई दिनों से मीडिया न्यूज चैनलों, अखबारों के अनुमान और बहस एक मर्तबा फिर व्यर्थ ही रही। यहां भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का चैनल अन्य मीडिया से काफी आगे और सबसे तेज साबित हुआ। ठीक वैसा जैसे राष्ट्रपति चयन के मामले में दो बार हो चुका है।
भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने दिग्गज दावेदारों की दावेदारी से किनारा करते हुए एक ऐसे युवा नए चेहरे मोहन यादव को मुख्यमंत्री पद पर आसीन होने का वरदान दे दिया जिनका नाम दूर- दूर तक कहीं नहीं था। मीडिया और समीक्षक अपने घोड़े दौड़ाते रहे । दावेदार उम्मीदों की मीठी खीर पकाते रहे और खीर की कटोरी डॉ मोहन यादव की किस्मत के हिस्से आ गई। देनेवाला जब भी देता देता छप्पड फाड़ के इसी को कहते हैं। नरेन्द्र सिंह तोमर,प्रहलाद पटेल, कैलाश विजयवर्गीय ने जिस पद को पाने अपनी पूरी जिन्दगी खपा डाली वह एक बार फिर धोखा दे गया। किसी ने सच ही कहा है भाग्य में मिलना लिखा होगा तो भागकर चला आएगा और नहीं लिखा होगा तो भागकर चला जायेगा। कमोवेश मुख्यमंत्री पद के सभी दावेदारों के साथ ऐसा ही हुआ। मोहन यादव के मुख्यमंत्री पद पर चयन के पीछे की मुख्य वजह उनकी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ी पृष्ठभूमि मानी जाती है। जिसके आशीर्वाद से उन्हें राजनीतिक जीवन का अनमोल पद मिला है। तो दूसरा मुख्य कारण उनके अच्छे कर्म आधारित प्रारब्ध हैं। और अगर इसका राजनीतिक मूल्यांकन किया जाए तो दरअसल, यह इस पद को लेकर दिग्गज नेताओं के बीच उस आंतरिक द्वंद्व की परिणिति है जिसकी आशंका शुरू से हर किसी के दिमाग मे चल रही थी। इसी ने दिल्ली हाईकमान को इस तरह का निर्णय लेने पर बाध्य कर दिया। एक बात तो तय थी कि मप्र में 164 सीटें जीतकर प्रचण्ड जनादेश मिलने के बाद भाजपा हाईकमान निर्णय को लेकर अब किसी प्रकार की दुविधा में नहीं रहेगा। परिणाम से स्प्ष्ट हो गया था कि भाजपा हाईकमान इस अवसर को पाकर मध्यप्रदेश में नए दौर का नया अध्याय लिखना चाहेगा। ठीक यही हुआ । चुनाव तैयार के दरमियान अमित शाह , जेपी नड्डा समेत हाईकमान ने जब यह एलान किया था कि मप्र में पार्टी मोदी के चेहरे और उनकी गारण्टी पर ही चुनाव लड़ेगी तभी से यह बात लगभग साफ हो गई थी कि मप्र में भाजपा सरकार बनने पर मुख्यमंत्री पद पर रहने का कीर्तिमान स्थापित करने वाले शिवराजसिंह चौहान को सत्ता सिंघासन छोड़ना होगा। हालांकि उनके इस पद पर बने रहने के प्रयासों में कोई कमी दिखाई नहीं पड़ी। उन्होंने अपने पूरे दांव पेंच बिठाने की हरसंभव कोशिश की लेकिन मोदी-शाह के आगे इस बार उनकी चल नहीं पाई। मध्यप्रदेश के विकास में शिवराज के अभूतपूर्व योगदान को हमेशा गर्व के साथ याद किया जाता रहेगा क्योंकि उन्होंने अपने अटूट परिश्रम से जनता और राज्य के कल्याण के लिए खुद को तक न्यौछावर करने से पीछे नहीं रखा। वे सीएम हाउस या वल्लभ भवन के मुख्यमंत्री बनकर नहीं रहे बल्कि एक जनसेवा बनकर कार्य किया है।
भाजपा मप्र विजय में उनकी लाड़ली बहना योजना की महती भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता मगर तीन राज्यों में मिली महाविजय में मुख्य रूप से पांच कारकों का बड़ा योगदान रहा है। पहला- हिन्दुत्व। दूसरा - राष्ट्रवाद का मुद्दा। तीसरा- केन्द्र सरकार की पीएम आवास, शौंचालय, किसान सम्मान निधि जैसी हितग्राही मूलक वे योजनाएं जिनका सीधा लाभ जनता को मिला। चौथा - भाजपा संगठन की शक्ति। और पांचवा - मोदी का व्यक्तित्व। जिसे मोदी मैजिक कहा जाता है। इतिहास पर गौर करें तो पता चलता है कि कांग्रेस पार्टी ने राजनीति में जहां -जहां गलतियां कीं, पीएम मोदी-शाह की जोड़ी ने उसे ही मुद्दे की शक्ल दी और फिर फायदा उठाया। चाहे प्रणव मुखर्जी को प्रधानमंत्री बनाने की बात रही हो, किसी आदिवासी को राष्ट्रपति या मुख्यमंत्री बनाने का विषय या फिर जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 का विषय। हर विषय को हल कर मोदी ने बाजी मारी और कांग्रेस की खटिया खड़ी कर दी। वह अपने कर्मों से खुद की कब्र खोद रही है। तो कोई क्या करे?
डॉ मोहन यादव मप्र में भाजपा के राजनीति के नए दौर का सूत्रपात है। वह आरएसएस के स्वयंसेवक हैं। वहीं विन्ध्य क्षेत्र में कांग्रेसी गढ़ को तहस नहस कर भाजपा को तीन चुनावों से अजेय दिलाने के बदले हाईकमान ने कद्दावर नेता राजेन्द्र शुक्ल को उपमुख्यमंत्री पद का ईनाम दिया है। छतीसगढ़ में आदिवासी नेता विष्णु कुमार साय को मुख्यमंत्री बनाने के बाद मप्र में जगदीश देवड़ा
को उपमुख्यमंत्री बनाकर भाजपा ने दलित वर्ग में बड़ा संदेश दिया है। मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार वरिष्ठ नेता नरेन्द्र सिंह तोमर मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बनने से तीसरी बार भी चूक गए। लेकिन उनके राजनीतिक अनुभवों का लाभ लेने विधानसभा अध्यक्ष बनाया गया है। इससे मप्र संसदीय परम्परा और समृद्ध होगी। हालांकि उन्हें जीवन पर्यन्त मुख्यमंत्री न बन पाने की टीस तो रहेगी पर विधानसभा अध्यक्ष का पद मिलना भी बहुत बड़ी बात है क्योंकि नौ बार के विधायक गोपाल भार्गव को यह पद भी नसीब नही हो पाया। बहरहाल, नए मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव के सामने कई तरह की चुनौतियां हैं। उम्मीद है वे अपने कौशल से इनसे जल्दी पार पाएंगे और मध्यप्रदेश की विकास यात्रा को नए शिखर तक ले जाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ेंगे।
डॉ. मोहन यादव को मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री बनाकर हाईकमान ने दस बड़े संदेश दिए हैं।
पहला- कायाकल्प अभियान प्रारंभ हो गया है। जिसके अंतर्गत ऊर्जावान नए चेहरों को अवसर दिए जाएंगे।
दूसरा- कोई भी कार्यकर्ता बड़े नेताओं के पिछलग्गू बने बिना भी पार्टी के प्रति अपनी निष्ठा, कर्मठता से शीर्ष नेतृत्व पद प्राप्त कर सकते हैं।
तीसरा- मीडिया, अखबारों में सुर्खियां बटोरेंने की और खुद को बेस्ट बताने की होड़ से बचें क्योंकि आपके कार्यों का मूल्यांकन पार्टी नेतृत्व करता है।
कोई उनकी सिफारिश नहीं करे तो भी वह इन तमाम बातों की चिंता छोड़कर जनसेवा में समर्पित रहें।
चौथा- भाजपा में छत्रपवाद/गुटबाजी के लिए कोई जगह नहीं है। यह कतई बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
पांचवा- भाजपा व्यक्तिगत नहीं सामूहिक नेतृत्व पर विश्वास करती है। अर्थात एकला चलो रे जैसा व्यक्तिवाद नहीं चलेगा।
छठा- कार्यकर्ताओं का परिश्रम कभी बेकार नहीं जाएगा।
सातवां- भाजपा युवा शक्ति को अवसर देकर उन्हें आगे बढ़ाएगी। अर्थात युवा पीढ़ी के लिए वरिष्ठों को जगह खाली करनी पड़ेगी।
आठवां- भाजपा योग्यता, क्षमता और कार्यकर्ता के योगदान की हमेशा चिन्ता करने वाला दल है।
नौंवा- केन्द्रीय शीर्ष नेतृत्व राज्यों पर अपनी पकड़ और मजबूत करेगा।
दसवां- आदिवासी, दलित, पिछड़ा, ब्राह्मणों/सवर्णों का सम्मान केवल भाजपा में ही सुरक्षित है।