भाजपा में जुबानी खटपट 
मोहन या मोदी को चुनौती ? 


विजय शुक्ला
मध्यप्रदेश में डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व में चल रही भाजपा सरकार के कामकाज को लेकर पार्टी का शीर्ष नेतृत्व खुश है और संतुष्ट भी । उन्हें मुख्यमंत्री बनाने का निर्णय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह का है इसलिए वे पूरी तरह मोहन के साथ हैं। हालांकि खुद को मुख्यमंत्री पद का दावेदार समझने वाले पार्टी के ही कुछ नेताओं को आज तक यह निर्णय पच नहीं रहा है। वह तो इसी गुड़पतान में होंगे कि काश कोई ऐसा मौका हाथ लग जाए , जब मोहन यादव को कुर्सी से उतार फेंके।
मुख्यमंत्री यादव राष्ट्रीय नेतृत्व की  मंशानुसार पूरी लगन- परिश्रम के साथ राज्य को नई ऊंचाई पर ले जाने के लिए कार्य कर रहे हैं। दूसरी रीजनल इन्वेस्टर्स समिट सफल रही । विकास के पहिये  दौड़ रहे हैं। जनता में मुख्यमंत्री की लोकप्रियता तेजी से बढ़ रही है। पिछले नौ महीने के कार्यकाल में मुख्यमंत्री मोहन यादव ने कई ठोस तथा त्वरित निर्णयों से जनता पर  अपना गहरा प्रभाव छोड़ा है ।सिस्टम का महत्वपूर्ण अंग कहलाने वाले प्रशासनिक अफसरों को तत्कालीन सरकार की तुलना में ज्यादा जवाबदेही से काम करना पड़ रहा है। नई सरकार के साथ  काम करने में मजा आ रहा है।  मोहन की कुशल कार्यशैली का  डंका बज रहा है वहीं दुश्मनों की लंका हिल रही है। इसी कारण 
 आंतरिक खटपट भी शुरू हो गई है। विपक्ष इस स्थिति में नहीं  कि मोहन सरकार के सामने कोई बड़ी चुनौती पेश कर सके लेकिन उसके अपने विधायक और मंत्री ही  जांघ ऊँघारने के प्रयास करते दिखाई दे रहे हैं। सरकार को घेरने बगावत की पहली शुरुआत बालाघाट जिले के  लांजी विधानसभा क्षेत्र से भाजपा विधायक राजकुमार कर्राहे द्वारा की गई। उन्होंने पत्रकार वार्ता कर आउटसोर्स कर्मचारियों की भर्ती में कम्पनी द्वारा लोगों से दो-दो लाख रुपये रिश्वत वसूली का आरोप लगाकर  विपक्ष को  हमलावर होने का मौका दिया।   प्रश्न उठता है जिस बात को  मुख्यमंत्री से मिलकर भी बता सकते थे, कर्राहे ने पत्रकार वार्ता क्यों की ?  ताजा मामला मोहन सरकार में कैबनेट मंत्री नागर सिंह चौहान का केंद्रीय नेतृत्व के खिलाफ सीधा मोर्चा खोलने का है। नागर सिंह ने आगे-पीछे की सोचे बिना मीडिया से कह दिया कि  वन,पर्यावरण विभाग उनसे लेकर कांग्रेस से भाजपा में आये रामनिवास रावत को देना गलत है। इससे वे बहुत दुःखी हैं।  मंत्री बने रहने का कोई मतलब नहीं रह गया; इसलिए इस्तीफा  देंगे। प्रश्न यह है कि दिल्ली हाईकमान 
को खुली चुनौती देने की हिम्मत नागर के भीतर आई कहां से ? या किसी के कहने पर उन्होंने बगावती बयान दिया। सम्भवतः यह बयान  किसी बड़ी साजिश से प्रेरित है। दरअसल, 
कोई कह रहा है पहली बार मे ही अलीराजपुर सीट पर कांग्रेस के दिग्गज नेता कांतिलाल भूरिया को पराजित कर सांसद पत्नी अनीता नागर को केंद्र में मंत्री न बनाये जाने की कुंठाग्नि में जल रहे मंत्री  ने बहकावे में आकर बयान दिया है।  अपनी  समझ कहती है कि लांजी विधायक और मंत्री दोनों को सरकार  के खिलाफ बयान देने के लिए पार्टी के ही एक गुट ने उकसाया है। जानकार कहते हैं -
 नागर सिंह चौहान और लांजी विधायक के भीतर इतना साहस नही था जो सरकार के खिलाफ बगावत कर सकें। इन बयानों को मुख्यमंत्री मोहन यादव को अस्थिर करने की बड़ी साजिश के रूप में यदि कहा जाए तो गलत नहीं होगा। कहीं इन दोनों बगावत बयानों का  कनेक्शन नर्सिंग घोटाले के आरोपों से घिरे मंत्री विश्वास सारंग से तो नहीं है ; जिन पर कांग्रेस लगातार हमलावर होकर इस्तीफे पर अड़ी हुई है ? पॉवर और प्रेशर पालिटिक्स  खुलकर नजर आने का आखिर क्या मतलब है ? कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी और नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंगार के हमलों के बीच पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजयसिंह का बीच मे अचानक सबसे आगे खड़े होना  भी कहीं  न कहीं मोहन यादव के विरोधियों की मदद करने जैसी आशंकाओं को जन्म देता है। खुद कांग्रेसी भी इसे लेकर हैरान हैं । सच्चाई यह है कि आज 
 मुख्यमंत्री की 
 लोकप्रियता कईयों को चुभ रही है। उन्हें डर है मोहन यादव शिवराज सिंह चौहान की तरह प्रदेश की राजनीति में अंगद की तरह पांव न जमा लें।  वन,पर्यावरण विभाग जाने के बावजूद नागर चौहान के पास अनुसूचित जाति कल्याण विभाग है। केंद्रीय नेतृत्व ने गोपाल भार्गव, भूपेंद्र सिंह, जयंत मलैया, अजय विश्नोई जैसे कद्दावर वरिष्ठ विधायकों को छोड़कर नागर चौहान को कैबिनेट मंत्री बनाया।  किसी विधायक का कैबिनेट मंत्री बनना ही अपने आप मे बड़ी बात  है।  कुछ दिनों से दिखाई दे रहे राजनीतिक घटनाक्रमों को देखकर तो यही लग रहा है कि कोई तो है जो मोहन सरकार के खिलाफ मंत्री,विधायक और नेताओं को बरगला कर उकसाने का षडयंत्र रच रहा है। इससे पूर्व गोपाल भार्गव, रघुनंदन शर्मा के तीक्ष्ण बयान भी आ चुके हैं। यानी ऐसा लग रहा है मानों मुख्यमंत्री को दिल्ली की नज़रों में कमजोर ठहराने की चाहत में विरोधियों ने रणनीति बनाई है। भाजपा जैसा अनुशासन दुनिया के किसी अन्य राजनीतिक दल में नहीं है फिर इस लक्ष्मण रेखा को लांघा क्यों जा रहा है ? मंत्री नागर ने कहा कि- भाजपा के मूल कार्यकर्ताओं के पद छीनकर कांग्रेसियों को देने से बड़ा दुःख होता है। उनकी इस बात में वाकई दम है। कांग्रेसियों को भाजपा में लाकर उन्हें बड़े पद देने से भाजपा कार्यकर्ताओं का  मन वास्तव में कचोटता तो होगा। क्योंकि सरकार बनाने में असली मेहनत तो उनकी है।  हालाँकि  इस तरह की बयानबाजी से मोहन यादव को कोई नुकसान नहीं होने वाला है । क्योंकि दिल्ली हाईकमान भी इस बात को अच्छी तरह से जानता है कि  मुख्यमंत्री को अस्थिर करने की कोशिशें हो सकती हैं। मोहन यादव को कमजोर या अस्थिर करने के लिए विरोधियों द्वारा  प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष  जितने भी हमले होंगे उससे उनकी ताकत घटने की बजाय और बढ़ेगी। मोहन अभिमन्यु नहीं जो दुश्मनों के चक्रव्यूह को भेद न सकें। परिश्रम की ताकत पुरुषार्थी  मनुष्य को कभी हरा नहीं सकती। 
समय आ गया है कि  शीर्ष नेतृत्व  मोहन को "सुदर्शन चक्र" भी प्रदान कर दे । मुख्यमंत्री बनाया है तो शीर्ष नेतृत्व को  मोहन यादव को  संरक्षण देकर सुरक्षा भी करनी पड़देगी।

न्यूज़ सोर्स : विजय मत