कांग्रेस का उद्धार कमलनाथ-दिग्विजय के रहते नही होने वाला

"कड़की में कांग्रेस कमल सहारे है। दिग्विजयसिंह के भाई इस हार के बाद पछता रहे होंगे कि उन्होंने भाजपा छोड़कर कांग्रेस को क्यों चुना ? कांग्रेस के लिए यह समय हार के आत्ममंथन से ज्यादा रिफॉर्म (सुधार) का है। "
विजय शुक्ला।
कांग्रेस ठेकेदार ईवीएम को कोसना बंद कर अपने गिरेबां में झांके
विधानसभा चुनाव के परिणामों से स्पष्ठ हो गया है कि कांग्रेस के पास 2024 आम चुनाव में पाने के लिए अब कुछ नहीं है। और यह भी तय समझिए कि प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के लिए कोई कमाल दिखा पाएं इस बात की सम्भावना कम है। कमोवेश ऐसा ही हाल वरिष्ठ नेता दिग्विजयसिंह के साथ भी है क्योंकि वे जिस राजगढ़,गुना और राघौगढ़ रियासत के राजा कहे जाते हैं उसे भाजपा ने जीतकर कांग्रेस को रंक बना दिया है। एक राघौगढ़ सीट छोड़कर राजगढ की सभी पांच सीटों पर भाजपा ने जीत हासिल की है। दिग्विजय के बेटे जयवर्धन किसी तरह किले की शान बचाने में सफल रहे लेकिन उनके चाचा लक्ष्मण सिंह चाचौड़ा सीट से हार गए। अब तो लक्ष्मण सिंह पछता रहे होंगे कि भाजपा को छोड़कर उन्होंने कांग्रेस में आने क्यों सोची? दरअसल, लक्ष्मण सिंह भाजपा से चार बार सांसद रह चुके हैं। 2018 विधानसभा चुनाव से पहले बड़े भाई दिग्विजय के कहने पर कांग्रेस में आए। चुनाव लड़कर जीते लेकिन कमलनाथ सरकार में उनकी वरिष्ठता को तवज्जो न देकर दिग्विजय सिंह ने बेटे को कैबिनेट मंत्री बनवा दिया।
बताते हैं कमलनाथ ने दिल्ली हाईकमान को गारन्टी दी थी कि मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में सरकार बनाकर देंगे,उन्हें फ्री हैंड इसी आश्वासन पर राहुल गांधी ने दिया। कमलनाथ के किसी निर्णय पर राहुल ने कभी एतराज नहीं जताया। उसे यह बहुत मंहगा पड़ा। मध्यप्रदेश के किसी नेता की दिल्ली दरबार ने नहीं सुनी। कमलनाथ अपने मन से सबकुछ करते रहे। भाजपा ने 27 विधायकों के टिकट काटे जिनमें 21 जीतकर आए जबकि कांग्रेस ने 92 वर्तमान विधायकों के टिकट न के बराबर काटे।
अलबत्ता, कांग्रेस पार्टी में वरिष्ठ विधायकों की संख्या में कमलनाथ, अजय सिंह राहुल, राजेंद्र कुमार सिंह, रामनिवास रावत और बाला बच्चन हैं इन्हीं में हाईकमान को नेताप्रतिपक्ष चुनना है। कुल मिलाकर बात की जाए तो पार्टी में ले देकर अब बाप-बेटे ही रह गए हैं। यह समय कांग्रेस के लिए हार का मंथन करने से अधिक नई कांग्रेस बनाने का है। उसे ऐसे नेता की आवश्यकता है जो नैराश्य में डूबे कार्यकर्ताओं में नई उम्मीद, नया जोश भरकर उन्हें लोकसभा चुनाव के लिए तैयार कर सके। क्षेत्र में घनघोर दौरे करे, जनता के लिए सड़कों पर संघर्ष करे। और यह सब तभी सम्भव हो पायेगा जब दिल्ली हाईकमान पुराने निकम्मे,ऊबाऊ और थके चेहरों को किनारे कर नए चेहरे को जिम्मेदारी देकर उन पर भरोसा जताए। कमलनाथ और दिग्विजय से कांग्रेस को दूरी बनानी होगी क्योंकि दोनो ही नेता पुत्रमोह से ग्रसित हैं। इसी पुत्रमोह के कारण कमलनाथ की सरकार पंद्रह महीने में गिर गई। बेचारे कांग्रेसियों को संघर्ष की खाई में डाल दिया जो प्राणों की बाजी लगाकर 20 साल से पार्टी के लिए संघर्ष कर रहे हैं। दिग्विजयसिंह राज्यसभा सांसद तो हैं ही उनका क्या बिगड़ना है बेटा भी विधायक बन ही गया है। कमलनाथ खुद विधायक हैं बेटा छिंदवाड़ा सांसद हैं। कांग्रेस का वर्तमान और भविष्य बर्बाद होने पर भी दिग्विजयसिंह की कोशिश पार्टी में अपना कब्जा बनाये रखने की होगी । वे बेटे को महत्वपूर्ण भूमिका दिलाने के अवसर खोजने से पीछे नहीं रहेंगे। कमलनाथ को नैतिकता के आधार पर प्रदेश अध्यक्ष पद पर बने रहने कोई अधिकार है ? क्या वे इस्तीफा देंगे ?
कांग्रेस लोकसभा चुनाव की तैयारियों का ढोल नगाड़ा पीटेगी। फिलहाल, कांग्रेस नेता नैतिकता के आधार पर इस्तीफा देने की बजाय अपनी नाकामियों को छुपाने की कोशिशें कर हार का ठीकरा ईवीएम पर फोड़ रहे हैं। कांग्रेस नेता लगातार ईवीएम को दोषी बताकर खुद को बचाने के प्रयास कर रहे हैं । जिससे दिल्ली हाईकमान को भ्रम में रखा जाए और हार के लिए उनकी जवाबदेही तय न हो। कमलनाथ पूरे समय तक दिग्विजय के रिमोट से चलते रहे। कपड़ा फाड़ पॉलिटिक्स सबने देखा है।
अंदरखाने की खबर है तीन राज्य हारने के बाद कांग्रेस हाईकमान की हालत कड़की हो गई है इसलिए उसे कमलनाथ का ही सहारा है। कांग्रेस हाईकमान को चाहिए कि वह ऊर्जावान युवाओं को संगठन और सदन की कमान सौपें। क्या वह ऐसा कर सकेगी? गांधी परिवार निष्ठावान नेताओं की सुध कब लेगा ?