गुजरात से प्रेरणा , हिमाचल से सबक लेगा मध्यप्रदेश 

विजय मत,भोपाल। 
प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी पूरी तरह से चुनावी मोड में आ चुकी है । मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान 
 ने तो अभी से ही मोर्चा संभाल लिया है।  मुख्यमंत्री जनसेवा अभियान और पेसा एक्ट को लेकर लगातार प्रदेशभर में लगाई जा रही चौपाल से सरकार समय रहते सांगठनिक एवं प्रशासनिक खामियों को ठीक करने के काम को तेज कर चुकी है। मुख्यमंत्री सिस्टम के प्रति जनता के मन मे पनपने वाली एंटी इनकम्बेंसी की हर संभावना को अभी से समाप्त कर देना चाहते हैं। इसीलिए एक साथ दो तीन तरह के कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। एक तरफ मुख्यमंत्री शिवराज जनजातीय समुदाय के बीच पाठशाला लगाकर उन्हें पेसा एक्ट की विस्तार से जानकारी देकर जागरूक कर रहे हैं। तो दूसरी ओर सड़क,बांध, पुल आदि निर्माण कार्यों की जांच निरीक्षण करने औचक पहुंच रहे हैं। स्कूली बच्चों से मिलने स्कूल जा रहे हैं। अच्छा काम करने वालों की सबके सामने पीठ थपथपा रहे हैं। तो कलेक्टरों को समय सीमा के भीतर हर काम को पूरा करने के सख्त निर्देश दे रहे हैं। वे चौपाल में लोगों से सीधा संवाद कर समस्याओं को सुनकर लापरवाह अधिकारियों को मंच से ही त्वरित दण्ड दे रहे हैं।  यानी भाजपा संगठन के साथ -साथ राज्य सरकार भी चुनावी मोड में आ चुकी है। सिस्टम के प्रत्येक नट बोल्ट को कसा जा रहा है । जहां तक विधानसभा चुनाव का सवाल है तो 2023 में सत्ता को बरकरार रखने की सबसे बड़ी चुनौती सरकार के मुखिया शिवराज सिंह चौहान और भाजपा संगठन पर है। जहाँ पार्टी संगठन ने अपने नीचे तक के काडर (कार्यकर्ता) को सक्रिय कर दिया है।  मुख्यमंत्री चौहान भी अपनी शैली बदलकर आक्रामक मूड में आ गये है। वे मोटिवेशनल गुरु की तर्ज पर नए प्रोफ़ेशनल्स को इनकरेज कर रहे हैं । उनके नये रोल से अधिकारी कर्मचारी ख़ौफ़ज़दा हैं। विधायकों की एन्टी इनकम्बेंसी को वे भाँप चुके है। उन्हें पिछले दिनों सीएम हाउस में डिनर पर बुलाकर वे कबीना मंत्री-विधायकों को सचेत भी कर चुके हैं। शिवराज ही मप्र में भाजपा का चुनावी चेहरा होंगे।  
 
असंतोष की काट ढूंढ़ी- 
गुजरात की एकतरफा जीत से प्रेरणा लेकर शिवराज ने एन्टी इनकम्बेंसी की काट ढूंड ली है वहीं हिमाचल प्रदेश का उदाहरण भी पार्टी के पास है। जहाँ हिमाचल में आंतरिक गुटबाजी और जन असंतोष  के चलते पार्टी  ख़राब परफॉर्मेंस वाले मंत्रियों और विधायकों के  बड़ी संख्या में   टिकट नही  बदल पायी और 11 में से 9 मंत्री चुनाव हार गये। मंत्रियों की यह हार भारी पड़ गई।  और प्रदेश में भाजपा सरकार चली गयी। वहीँ गुजरात मे उसने 99 मौजूदा विधायकों में से 45 की टिकट काट दी। इसका फायदा यह रहा कि इन 45 नए चेहरों में 43 चुनाव जीत गए । लिहाजा गुजरात की जीत से  प्रेरणा लेते हुए इसी तर्ज पर मध्यप्रदेश में भाजपा आलाकमान भी बड़ी संख्या में चेहरे बदलने का मानस बना चुका है। सूत्रों की माने तो हाल ही में कराये एक सर्वे ने भाजपा संगठन के माथे पर चिंता की लकीर खींच दी है। इस सर्वे में जहाँ ग्वालियर-चंबल ,विंध्य और बुंदेलखंड में पार्टी की स्थिति चिंताजनक बताई गई है , वहीँ मालवा निमाड़,महाकौशल जैसे भाजपा के परम्परागत गढ़ में भी कई बड़े चेहरे हारते हुये नज़र आ रहे है। 

बदला सकते हैं इन विधायकों के टिकट -- 
कमलेश जाटव( अम्बाह), ओ पी एस भदौरिया ( मेहगांव), महेंद्र सिंह ( बामोरी ),  रक्षा सिरोनिया ( भांडेर), महेश राय ( बिना ),राकेश गिरी ( टीकमगढ़), जसपाल जज्जी ( अशोकनगर ), धर्मेंद्र लोधी ( जबेरा ), प्रहलाद लोधी ,राकेश प्रजापति ( चंदला ), रामलल्लू वैश्य ( सिंगरौली  ),श्यामलाल द्विवेदी ( त्योंथर), शरद कोल ( ब्यौहारी ),प्रणव पांडे ( बहोरीबंद), प्रेमशंकर वर्मा ( सिवनी मालवा ), रघुनाथ मालवीय ( आष्टा ),करणसिंह वर्मा ( इछावर ),आशीष शर्मा ( खातेगांव ), पहाड़ सिंह ( बागली ), बहादुर सिंह ( महिदपुर ),सुमित्रा देवी ( नेपानगर ),महेंद्र हार्डिया ( इंदौर 5 ), उषा ठाकुर ( महू ), नारायण त्रिपाठी (मैहर)
इनके अलावा भी अनेक विधायकों और मंत्रियों के बड़ी संख्या में टिकट काटे जाने की खबरें हैं। 

आदिवासी वोटरों में ग्राफ़ बढ़ा - 
हिमाचल प्रदेश और गुजरात मे भाजपा को आदिवासियों का भरपूर समर्थन भले ही नहीं मिला लेकिन मध्यप्रदेश में आदिवासियों का भरोसामोदी-शिवराज-भाजपा के प्रति लगातार बढ़ रहा है। सरकार की नीतियां असरकारक साबित हो रही हैं। डोर-टू डोर राशन वितरण और हर घर जल पहुंचाने की नलजल मिशन से जनजातीय समुदाय का झुकाव बढ़ा है जो भाजपा के लिए अच्छे संकेत कहे जा सकते हैं। हालांकि आदिवासी आरक्षित सीटों के  विधायकों को लेकर लोगों के भीतर कड़ी नाराजगी है। उनका कहना है कि समाज के होकर भी मंत्री उनके बीच मुख्यमंत्री की तरह चौपाल लगाने नहीं आते। केवल अफसरों से मिलकर रहते हैं। शिवराज की लोकप्रियता में कहीं कोई गिरावट नहीं देखी जा रही है। बल्कि वह और बढ़ी है। बता दें मप्र में 47 अनुसूचित जनजाति की सीटें हैं।  


कांग्रेस ने कसी चुनावी कमर लेकिन तेवर वैसे नहीं- 
विधानसभा चुनाव की तैयारियों को लेकर कांग्रेस पार्टी ने भी कमर कस ली है। मंडलम,सेक्टर को मजबूत किया जा रहा है। गांधी चौपाल लगाकर लोगों से सम्पर्क स्थापित किया जा रहा है। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा से कांग्रेस को कितनी मजबूती मिली है इसका आकलन कर पाना फिलहाल कर पाना मुश्किल है लेकिन कार्यकर्ता का मनोबल इससे थोड़ा जरूर बढ़ा है। अब देखने वाली बात यह है कि प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ कार्यकर्ता के इस मनोबल को कितने समय तक बनाये रखने में सफल हो पाते हैं। जरूरत इस बात की है कि कमलनाथ भी जनता के बीच जाकर उसका हालचाल जानें मगर कांग्रेस में चुनावी सक्रियता और आक्रामकता के तेवर नजर नहीं आ रहे हैं जैसी होनी चाहिए। संगठन स्तर पर भी गिने चुने नेताओं के सहारे वे चल रहे हैं। विधानसभा के शीतकालीन सत्र में नेता प्रतिपक्ष डॉ गोविंद सिंह ने अविश्वास प्रस्ताव लाने की घोषणा की है। विधानसभा मुख्य सचिव को सूचना भी दे दी गई है। लेकिन देखना यह है कि अविश्वास प्रस्ताव कहीं गुब्बारा बनकर ही न रह जाए और हर बार की तरह सरकार उसकी हवा निकालकर रख दे। मध्यप्रदेश में कमलनाथ की तुलना में शिवराज की लोकप्रियता बहुत अधिक है। यही बात कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी। मोदी फैक्टर तो पहले से ही चुनौती है।

न्यूज़ सोर्स : Vijay Mat