तीन राज्यों के जनादेश के पीछे किसकी ताकत ?

राहुल गांधी जनेऊ और अपना गोत्र बताकर चाहे जितनी भारत जोड़ने की यात्रा करें सनातन के अपमान का श्राप उनका पीछा नहीं छोड़ने वाला है। राम को काल्पनिक, सनातन को डेंगू,मलेरिया बताने वाला इंडिया गठबंधन उसके आगे टिक नहीं पाएगा।
त्रिफला जनादेश सनातन के स्वर्णयुग,
का शुभ संकेत
विजय शुक्ला
मध्य प्रदेश सहित देश के तीन राज्यों में कांग्रेस पार्टी के मटियामेट होने का सतही कारण स्थानीय छत्रपों का प्रभुत्व, सत्ता अहंकार , अहम् ब्रह्मास्मि वाली सोच कहीं जा रही है लेकिन इसका मूल कारण दरअसल, कांग्रेस पार्टी द्वारा सनातन के विरुद्ध लगातार दिए गए अनाप-शनाप बयान और राहुल गांधी के हमले हैं ,जिससे सबसे अधिक नुकसान पहुंचा है। सनातन धर्म और मंदिरों के बारे में राहुल की अतार्किक एवं मूर्खतापूर्ण फिलासफी ने कांग्रेस को गहरी खाई में धकेल दिया है । एक ओर वे कश्मीर से कन्याकुमारी को जोड़ने के लिए भारत जोड़ो यात्राएं निकालते हैं वहीं दूसरी तरफ चुनाव में जातिगत जनगणना की रट लगाते रहे । उनके इसी दोहरे चरित्र को मतदाताओं ने ताड़ लिया और कांग्रेस का तर्पण कर दिया । त्रिफला जनादेश सनातन की जीत तो है साथ ही यह जातिगत जनगणना के विरुद्ध सामूहिक जन समर्थन भी है । कांग्रेस जातिगत जनगणना में देश की जनता को जातियों में बांटने का जो राग अलाप रही है , उसे तीन राज्यों के मतदाताओं ने सिरे से खारिज कर दिया है । उम्मीद है मतदाताओं ने राहुल के पाखंड को भी अच्छी तरह समझ लिया है । राहुल ने सांसदों की तुलना मंदिरों की मूर्तियों से और उन्हें शक्तिहीन बताकर सनातन को अपमानित किया। वे यह पाप कई बार कर चुके हैं। यही कारण है कि विधानसभा चुनाव में तीन राज्यों का मतदाता कांग्रेस के लुभावन वचनों , घोषणाओं के
मकड़जाल में नहीं उलझा। राजस्थान में उसकी सरकार ढह गई हालांकि गहलोत के कारण वहां कांग्रेस का उतना मटियामेट नहीं हो पाया जितना मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में देखने को मिला है। सवाल उठना स्वाभाविक है कि कांग्रेस को क्या सनातन के अपमान का श्राप लगा है? उसके नेता आचार्य प्रमोद कृष्णन की दृष्टि में तो ऐसा ही है । प्रमोद कृष्णन ने इशारे में कांग्रेस हाईकमान को सतर्क करते हुए कहा है यदि उसने सनातन के खिलाफ बोलने वाले नेताओं को अलग नहीं किया तो सनातन का श्राप उसे ले डूबेगा। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने मोदी मैजिक से दमदारी से लड़ाई लड़ी लेकिन सनातन विरोधी पनौती उन्हें ले डूबी। छत्तीसगढ़ में भूपेश सरकार को भ्रष्टाचार के आरोपों की आंधी एवं आदिवासी समुदायों को अलग-अलग बांटने की रणनीति रसातल में ले गई। मध्य प्रदेश में कांग्रेस को उसका वैचारिक दिवालियापन निगल गया। उसकी वैचारिक स्पष्टता पूरे चुनाव में गायब दिखी। वह तो केवल भाजपा की पिछलग्गू ही बनी रही। प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ ने मप्र में भाजपा से ज्यादा लड़ाई तो सही मायनों में राहुल गांधी और इंडिया गठबंधन के सहयोगी दल डीएमके की तमिलनाडु सरकार के मुख्यमंत्री एमके के स्टालिन के नासमझ बेटे उदयनिधि के सनातन विरोधी बयानों से चुनाव पर पड़ने वाले बुरे असर से बचाने की लड़ी है। भाजपा की इस जीत में पहला फैक्टर हिंदुत्व, दूसरा राष्ट्रवाद, तीसरा केन्द्र सरकार की जन हितग्राही योजनाएं और चौथा संगठन है।
दरअसल , चुनाव जीतने के लिए जिस सांगठनिक एवं राजनीतिक सामंजस्य की सबसे अधिक आवश्यकता होती है कांग्रेस ने उसी से कोई वास्ता नहीं रखा । कमलनाथ ने अपनी ही पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की नहीं सुनी। केवल अपनी मर्जी ही सब पर थोपते रहे ! वे भावी मुख्यमंत्री के अहंकार में इतना डूबे कि गठबंधन के सहयोगी दलों से चुनाव में किसी तरह का सहयोग लेना जरूरी ही नहीं समझा। उल्टा उनके नेताओं का खुले तौर पर अपमान और मजाक उड़ाया। कांग्रेस ने प्रत्याशी चयन में सावधानी बरती होती तो दिग्विजय और कमलनाथ के बीच द्वंद में उलझी ना रहती। हिंदी भाषी राज्यों में हिंदुत्व की प्रतिध्वनि ने भाजपा की राह को आसान बनाने का काम किया है। धार्मिक समावेशिता से अधिक सनातन से उसे नई ताकत मिली है। वस्तुतः तीन राज्यों को राहुल गांधी के सनातन विरोधी कर्मों ने विजय थाल सजाकर भाजपा को सौंपा है। इस चुनाव में उन क्षेत्रीय दलों और उसके नेताओं की भी हार हुई है जो खुद के सामाजिक ठेकेदार होने का दम भर कर जातियों को आपस में बांटने की राजनीति दशकों से करते आए हैं। मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ में मतदाताओं ने इन्हें एक्सपायरी दवा समझकर कचरे की टोकरी में डाल दिया ! यदि ये घमण्डिया दल अपनी आदतों से बाज नहीं आए तो 2024 के आम चुनाव में इनका हश्र और बुरा होने वाला है । तीनों राज्यों में मतदाताओं ने भाजपा को आखिर इतना प्रचंड, स्पष्ट एवं साफ सुथरा जनादेश क्यों दिया ? इसका उत्तर है- उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कहने और करने में कोई फर्क समझ में नहीं आया। उनका आचरण देश -दुनिया में पहले से और बेहतर प्रामाणिक हुआ है। सनातन के प्रति भाजपा की
स्पष्टवादिता एवं प्रतिबद्धता भारत के करोड़ों लोगों को पसंद आ रही है। त्रिफला जनादेश मतदाताओं के मोदी पर अटूट विश्वास एवं आस्था की मुहर है। प्रश्न उठता है इन तमाम बातों का असर तेलंगाना और इससे पहले कर्नाटक, हिमाचल में अपना असर क्यों नहीं दिखा पाया? इसका उत्तर है- क्योंकि तेलंगाना और कर्नाटक में लड़ाई क्रमशः सामंती -वंशवाद बनाम जनता का शासन के बीच थी । तेलंगाना में जनता केसीआर की सामंती सोच के खिलाफ खड़ी हो गई । कांग्रेस यहां धार्मिक अल्पसंख्यकों दलित अन्य पिछड़ा वर्ग को लामबंद करने में सफल रही ,इसका फायदा उसे मिला । भाजपा ने कांग्रेस के तमाम हथकंडों के बाद भी 8 सीटें जीती। कर्नाटक और हिमाचल में सरकार में बैठे नेताओं की गलत नीतियों से भाजपा को नुकसान हुआ। जिससे उसने सबक भी सीखा ।
लोकसभा चुनाव में हिमाचल और कर्नाटक भाजपा का साथ यदि दें तो इसमें कोई अचरज नहीं होगा । कांग्रेस ने दक्षिणी राज्यों में सनातनियों के विरोधियों के साथ मिलकर अपनी संभावनाएं जगाईं हैं हालांकि यह वैचारिकता विहीन है । कांग्रेस को अपनी वैचारिक स्पष्टता पर आत्म मंथन करने की आवश्यकता है। भाजपा ने तीनों राज्यों में स्थानीय छत्रपों को पीछे रखकर चुनाव लड़ने का जोखिम मोल लिया बावजूद सनातन शक्ति और मोदी पर भरोसे ने उसे जनता का अपार समर्थन दिलाया है । इससे यह बात भी स्पष्ट हो गई है कि भाजपा में छत्रपवाद के लिए कोई जगह नहीं है। इस ऐतिहासिक जीत में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सेवकों की निस्वार्थ सेवा का भी बड़ा योगदान रहा है , जिसने अपने वैचारिक तर्कों से उन मतदाताओं को राष्ट्र के प्रति जागृत किया जो स्थानीय विधायकों ,सरकारी तंत्र और नेताओं की अकर्मण्यता से खासी नाराज थी। शिवराज सरकार की लाडली बहना योजना भी प्रभावी कारक अवश्य रही है, जिसने महिलाओं को अपनी तरफ आकर्षित किया और उन्हें मतदान केंद्रो तक लाने का असली काम भारतीय जनता पार्टी के लाखों लाख कार्यकर्ताओं की कड़ी मेहनत से संभव हो सका। वैसे भी संगठन के मामले में भाजपा का आज कोई तोड़ नहीं है। मप्र में प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने कड़ी मेहनत की है। बहरहाल, गौ,गंगा, गायत्री और सनातन का अपमान देश की जनता कभी बर्दाश्त नहीं करेगी। जनसमर्थन का यही मिजाज रहा तो लोकसभा चुनाव में भाजपा न केवल अपने बूते केंद्र में तीसरी बार सरकार बनाएगी बल्कि 2019 में मिली 282 सीटों के रिकॉर्ड को तोड़कर 325 से ज्यादा सीटें लाएगी। भाजपा इस जनादेश के बाद अपने घोड़े दौड़ाएगी। सम्भव है आरएसएस के अस्तबल के अश्वों को मुख्यमंत्री बनाने का नया दौर भी शुरू हो। जिसके तहत संघ पृष्ठभूमि से जुड़े चेहरों को राज्यों को कमान सौंपी जा सकती है। छत्तीसगढ़ में विष्णु कुमार साय, मप्र में डॉ मोहन यादव जैसे नए चौकाने वाले नाम मुख्यमंत्री के तौर पर सामने यदि आएं तो अचरझ नहीं होना चाहिए। राजस्थान भी चौका सकता है। कोई नया चेहरा ही आएगा।
(लेखक विजय मत समाचार पत्र के प्रधान सम्पादक और जाने-माने वरिष्ठ स्तम्भकार हैं। दैनिक भास्कर, राज एक्सप्रेस, प्रदेश टुडे, स्वदेश, पीपुल्स समाचार,दबंग दुनिया आदि अखबारों में विभिन्न पदों पर कार्य करने के साथ -साथ संपादक रह चुके हैं। )