नई दिल्ली । केंद्र सरकार द्वारा 24 फरवरी 2024 को तीन नये आपराधिक कानूनों को लेकर अधिसूचना जारी होने के बाद राज्यसभा सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कैंपेन फॉर ज्यूडिशियल अकाउंटेबिलिटी एंड रिफॉर्म्स- (सीजेएआर) विषय पर एक सेमिनार में कहा, जब अंग्रेजों ने भारत पर राज करने के लिए कानून बनाया था। उनके बनाए कानून में पुलिस संदेह के आधार पर किसी को भी गिरफ्तार कर सकती है। वे नहीं चाहते थे कि लोग ब्रिटिश सरकार के खिलाफ बोलें या अपनी राय खुलकर रखें। गुलामी से आजादी मिले 76 साल होने के बावजूद उन प्रावधानों को जारी रखने पर मुझे ऐतराज है। आखिर, ऐसा प्रावधान संवैधानिकता की परीक्षा में कैसे पास हो सकता? कपिल सिबल के मुताबिक संदेह के आधार पर पुलिसिंग का क्या मतलब होता है? मुझे बिना कोई आरोप बताए पुलिस गिरफ्तार कर लेगी और 14 दिनों के लिए जेल में डाल देगी। यह कितना तर्कसंगत हो सकता है। पश्चिमी या यूरोपीय देशों में जांच के बाद किसी की गिरफ्तारी होती है, लेकिन भारत में पहले गिरफ्तारी होगी, फिर जांच होगी। कानून के जरिए लोगों को स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता। मुझे इससे समस्या है। मुझे नहीं पता किसी ने इस प्रावधान को चुनौती क्यों नहीं दी? कपिल सिबल के मुताबिक पीएमएलए के तहत लोगों को जब बयान के लिए बुलाया जाता है तो यह नहीं बताया जाता कि बयान किस एहसियत से दर्ज हो रहे हैं। क्या वह व्यक्ति गवाह है। क्या वह व्यक्ति आरोपी है। वह कौन है। बस एक नोटिस आता है कि इस दिन आएं और अपने बयान दर्ज कराएं। दरअसल, गृह मंत्रालय ने शनिवार को तीन अधिसूचनाएं जारी की हैं। नए कानूनों एक जुलाई से लागू होंगे। ये कानून ब्रिटिश काल की भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 का स्थान लेंगे। तीनों कानूनों का मकसद विभिन्न अपराधों और उनकी सजाओं को परिभाषा देकर देश में आपराधिक न्याय प्रणाली को पूरी तरह से बदलना है।