साल 2023: मध्यप्रदेश की राजनीति में बड़े बदलावों का दौर और जंग शुरू 

कांग्रेस से मुख्यमंत्री पद का दावेदार कमलनाथ या जयवर्द्धन ?

विजय मत,भोपाल। 
मध्यप्रदेश में कांग्रेस पार्टी ने सत्ता की पुनर्प्राप्ति के लिए शंखनाद कर दिया है। प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ को हाईकमान ने सभी प्रकार के निर्णयों के लिए पूरी स्वतंत्रता दे दी । वे जैसे चाहें फैसले कर सकते हैं। पार्टी के सबसे सीनियर और गांधी परिवार के भरोसेमंद नेता होने का पूरा फायदा उन्हें मिला है लेकिन क्या वे इन अधिकारों को सत्ता सिंघासन तक पहुंचाने के अवसर में बदल पाएंगे, यह देखना होगा। राहुल गांधी की भारत जोड़ने की यात्रा का वास्तविक परिणाम तो नवम्बर में प्रस्तावित विधानसभा चुनाव होंगे क्योंकि असल में तभी यह पता चलेगा कि उनकी यात्रा जनता को अपने से कितनी जोड़ पाई। भारत जोड़ने की इस यात्रा के असर को तब तक बनाये रखना कमलनाथ के लिए सबसे मुश्किल भरी चुनौती होगी। हालांकि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने यात्रा का असर फीका न पड़ने पाए इसलिए सभी राज्य इकाइयों को हाथ से हाथ मिलाने का कार्यक्रम बनाकर उसे अभियान की तरह चलाने का रोडमैप तैयार करते हुए इसके प्रभारियों की नियुक्ति की है। कर्नाटक, राजस्थान, मध्यप्रदेश सहित नौ राज्यों के विधानसभा चुनाव इसी साल होने वाले हैं। तो इसके पीछे अगले साल 2024 को लोकसभा चुनाव हैं। कुलमिलाकर राजनीतिक दलों के पास अब सांस लेने तक की फुर्सत नहीं बची है। कांग्रेस के सामने अपने अस्तित्व को बचाने जैसा कोई खतरा तो नहीं है मगर आम आदमी पार्टी ने गुजरात मे 13 फीसदी यानी 40 लाख वोट लेकर राष्ट्रीय पार्टी के तौर पर पहचान और प्रसिद्धि पाई है उसके बाद कांग्रेस के लिए देश का मुख्य विपक्षी दल बने रहने का संघर्ष अवश्य है। हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली सत्ता उसका आत्मबल बढ़ाने वाली है फिर भी जिन राज्यों में चुनाव होने हैं वहां की परिस्थिति भिन्न है। मसलन, हिमाचल में भाजपा का विकल्प केवल कांग्रेस थी इसलिए जनता ने उसे बहुमत दिया। हर पाँच साल में सरकार बदलने के रिवाज को इसका कारण कहा गया। 
भाजपा की बात की जाए तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता फिलहाल यथावत होने से फायदा होगा। अमित शाह, शिवराजसिंह चौहान, योगी आदित्यनाथ, रमन सिंह,यशोधरा राजे,भूपेंद्र यादव,नरेन्द्र सिंह तोमर,ज्योतिरादित्य सिंधिया,उमा भारती जैसे कद्दावर चेहरे भाजपा के पास होने से उसकी ताकत कायम है। तो कांग्रेस के सामने कद्दावर नेताओं की कमी है। जो बचे हैं उनकी स्थिरता स्पष्ठ नहीं है। यानी नए साल में ज्यादा बड़ी चुनौती कांग्रेस के सामने है। राहुल गांधी अपने सामर्थ्य के अनुसार पार्टी में प्राण फूंकने के प्रयास कर रहे हैं लेकिन उनके बयानों से ही पार्टी के लिए मुश्किल पैदा कर देते हैं। मध्यप्रदेश में कांग्रेस के पास कहने को कमलनाथ के बाद दिग्विजयसिंह कद्दावर नेता हैं मगर जनता में उनकी विश्वसनीयता घटी है। 76 साल के कमलनाथ पर चुनावी दारोमदार है। 

कांग्रेस सरकार के आसार कम फिर भी सीएम का चेहरा कमलनाथ या जयवर्द्धन ? 

मध्यप्रदेश कांग्रेस का नेतृत्व कहने को तो कमलनाथ कर रहे हैं किन्तु सही मायने से देखा जाए तो कांग्रेस का रिमोट दिग्विजयसिंह के हाथ मे आ चुका है। युवा कांग्रेस, महिला कांग्रेस,सेवादल, एनएसयूआई आदि मोर्चा संगठनों में उनके समर्थक हैं तो नेता प्रतिपक्ष डॉ गोविन्द सिंह उन्हीं के रबर स्टैंप कहे जाते हैं। कमलनाथ का पूरा भविष्य दिग्विजयसिंह के सहारे है। यूं तो मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने के आसार फिलहाल कम नजर आ रहे हैं फिर भी यदि एक बार ऐसी संभावना देखें तो बड़ा सवाल उठता है कि क्या कमलनाथ  दोबारा मुख्यमंत्री बन पाएंगे या दिग्विजयसिंह के बेटे जयवर्द्धन सिंह के नाम पर नया प्लान तैयार किया जाएगा। ज्यादा संभावनाएं जयवर्द्धन की होगी क्योंकि जिस नेता के पास ज्यादा विधायकों का समर्थन रहेगा उसी को मुख्यमंत्री पद । वर्तमान स्थिति की बात करें तो मौजूदा 98 विधायकों में संख्याबल दिग्गी समर्थकों का है। जयवर्द्धन का दायरा बढ़ाने पर तेजी से काम चल रहा है।  कांतिलाल भूरिया, 
डॉ गोविन्द सिंह,पीसी शर्मा, आरिफ अकील, लक्ष्मण सिंह जैसे वरिष्ठ विधायक जेवी (जयवर्द्धन) को अपना नेता मानने में पल भर की देर नहीं करेंगे। जानकर कहते हैं कि कमलनाथ के समर्थन में करीब 20 -25 विधायक ही हैं। जयवर्द्धन को नेता बनाने की नीवं बड़ी चतुराई से दिग्विजय सिंह ने 2018 चुनाव के ठीक बाद उसी समय रख दी थी जब वरिष्ठ विधायकों को दरकिनार कर कई युवाओं को कैबिनेट मंत्री बनवाया गया था। 
दिग्विजयसिंह आज दिल्ली दरबार मे बहुत मजबूत हैं। जीतू पटवारी उतने ही मजबूत हैं। फिर भी दिग्विजय तो दिग्विजय हैं। 


भाजपा की नैया पार लगाएंगे शिवराज - 
भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व का भरोसा मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान को लेकर और बढ़ा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमित शाह उन्हें भलीभांति जांच परख चुके हैं। उनकी तरह सक्रिय, परिश्रमी और जनता के प्रति समर्पित व लोकप्रिय नेता भाजपा में और कोई दूसरा नहीं है। मुख्यमंत्री के तौर पर उनकी चौथी पारी के साढ़े तीन साल बेमिसाल रहे हैं। हाईकमान ने इन्ही बातों पर गौर करने के बाद शिवराज के चेहरे पर ही चुनाव लड़ने का इरादा पक्का कर लिया है। सूत्रों की माने तो सांगठनिक स्तर पर नया साल बड़े फेरबदल के संकेत दे रहा है। प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा के लिए आने वाले दो-तीन महीने अहम कहे जा रहे हैं। महासचिव कैलाश विजयवर्गीय, नरोत्तम मिश्रा, भूपेन्द्र सिंह की भूमिका में परिवर्तन की संभावनाएं बन रही हैं। नरोत्तम मिश्रा मोदी-शाह के भरोसेमंद हो गए हैं तो भूपेन्द्र सिंह शिवराज के सबसे खास।

न्यूज़ सोर्स : Vijay Mat