शिवराज सरकार की सार्थक पहल से बदला आदिवासियों का जीवन
मध्यप्रदेश में तेजी से बदलता जनजातीय जीवन
मुख्यमंत्री शिवराज ने बदली तस्वीर
मध्यप्रदेश को यह गौरव हासिल है कि यह देश की सर्वाधिक जनजातीय जनसंख्या का घर है। प्रदेश का इन्द्रधनुषीय जनजातीय परिदृश्य अपनी विशिष्टताओं की वजह से मानव-शास्त्रियों, सांस्कृतिक अध्येताओं, नेतृत्व शास्त्रियों और शोधार्थियों के विशेष आकर्षण का केन्द्र रहा है। यहाँ की जनजातियाँ सदैव से अपनी बहुवर्णी संस्कृति, भाषाओं, रीति-रिवाज और देशज तथा जातीय परम्पराओं के साथ प्रदेश के गौरव का अविभाज्य अंग रही है।
लम्बे समय तक प्रदेश का जनजातीय समुदाय अपनी इन तमाम विशिष्टताओं के बावजूद विकास की मुख्य-धारा से लगभग अलग-थलग रहा, पर अब यह स्थिति बदल रही है। मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में पिछले अठारह वर्षों में प्रदेश की जनजातियों की सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक स्थिति में व्यापक बदलाव आया है। अब वे अपनी गौरवशाली परम्पराओं के साथ आधुनिक समय के साथ कदमताल करते हुए अपने संवैधानिक अधिकारों के साथ मुख्य धारा में है और सरकारी सर्वोच्च प्राथमिकता में।
इन 18 वर्ष में प्रदेश में जनजातीय वर्गों के कल्याण के लिये सबसे बड़ा काम जनजातीय वर्गों की आबादी के अनुपात में बजट में राशि के प्रावधान का हुआ। वर्ष 2003-04 में जनजातीय कार्य विभाग का बजट 746.60 करोड़ रुपये था, जो वर्ष 2022-23 में 10 हजार 353 करोड़ रुपये का हो गया है। इस प्रकार बजट में 948 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
प्रदेश के सभी 89 जनजातीय विकासखण्डोंमें सार्वजनिक वितरण प्रणाली में ग्राम स्तर तक राशन पहुँचाने के लिए "मुख्यमंत्री राशन आपके ग्राम" योजना लागू की गई है। अब तक 472 जनजातीय युवाओं को योजना के राशन वाहन हेतु 10 करोड़ 80 लाख रूपये की मार्जिन मनी की वित्तीय सहायता उपलब्ध करायी गई है।
सभी 89 जनजातीय विकासखण्ड में गर्भवती महिलाओं एवं 6 माह के बच्चों से 25 वर्ष तक के युवाओं में सिकलसेल रोग की रोकथाम के लिए हीमोग्लोबिनोपैथी मिशन लागू कर सिकल सेल स्क्रीनिंग, रोकथाम, प्रबंधन, जैनेटिक काउंसलिंग एवं जन-जागरूकता का कार्य किया जा रहा है।
प्रदेश में प्रतिवर्ष 15 नवम्बर को जनजातीय गौरव दिवस मनाया जा रहा है। जनजातीय जननायकों की स्मृतियों को चिरस्थायी बनाने के लिए स्मारक और संग्रहालय बन रहे हैं। हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम रानी कमलापति, पातालपानी रेलवे स्टेशन का नाम टंट्या मामा के नाम पर किया गया है। इन्दौर में भंवरकुआँ चौराहे पर टंट्या मामा की मूर्ति स्थापित की गई। छिन्दवाड़ा विश्वविद्यालय का नामकरण राजा शंकरशाह विश्वविद्यालय और मंडला मेडिकल कॉलेज का नामकरण राजा ह्दयशाह मेडिकल कॉलेज किया गया है। क्रान्तिसूर्य टंट्या मामा के बलिदानों का स्मरण करते हुए इस वर्ष गौरव कलश यात्रा का आयोजन किया गया।
जनजातीय युवाओं को स्व-रोजगार के नए अवसर उपलब्ध करवाने के लिये प्रदेश में इसी वर्ष से तीन नयी योजनाएँ - भगवान बिरसा मुण्डा स्व-रोज़गार योजना, टंट्या मामा आर्थिक कल्याण योजना और मुख्यमंत्री अनुसूचित जनजाति विशेष परियोजना वित्त पोषण योजना लागू की गई है। साथ ही सरकारी नौकरियों में बेकलॉग के पदों पर भर्ती की कार्रवाई भी की जा रही है।
अंग्रेजों के समय से सरकार के पास जंगलों का स्वामित्व था। अब मध्यप्रदेश में कीमती सागवान लकड़ी के साथ ही अन्य वन संपदा की 20 प्रतिशत राशि के मालिक वनवासी होंगे। प्रदेश में गौण वनोपजों के प्रबंधन का अधिकार अब ग्राम सभा को है। वनाधिकार कानून के अंतर्गत भी कुल 2 लाख 70 हजार 815 व्यक्तिगत और करीब 30 हजार सामुदायिक दावे मान्य किये गये हैं। जनजातीय बहुल क्षेत्रों में औषधीय और सुंगधित पौधों की खेती को प्रोत्साहन देने के लिए "देवारण्य योजना'' लागू की गई है।
मध्यप्रदेश के 26 जिलों के 827 वन ग्रामों को राजस्व ग्रामों में परिवर्तित करने की शुरूआत कर दी गई है। वन ग्रामों के राजस्व ग्राम बन जाने से बँटवारा और नामांतरण होने के साथ फसलों की गिरदावरी भी हो सकेगी।
मेडिकल, इंजीनियरिंग और पॉलीटेक्निक की पढ़ाई हिन्दी भाषा में प्रारंभ होने से जनजातीय वर्ग के उन विद्यार्थियों को सीधा लाभ मिलेगा जो दूरस्थ अंचलों में मातृभाषा में पढ़ाई कर बड़े हुए हैं।
अनुसूचित जनजातियों के एक हेक्टेयर तक की भूमि वाले एवं 5 हार्स पावर भार के कृषि उपभोक्ताओं को नि:शुल्क विद्युत प्रदाय किया जा रहा है। विमुक्त जनजातियों के कल्याण के लिए राज्य सरकार ने प्रतिवर्ष 31 अगस्त को "विमुक्त जाति दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया है।