भोपाल । मध्यप्रदेश में अब नई सरकार ही कृषि उपज मंडी के चुनाव करा सकती है। साल 2016-17 से बीजेपी-कांग्रेस के किसान नेताओं को मंडी चुनाव का इंतजार था, जो अब तक नहीं हो पाए। इस दौरान करीब डेढ़ साल तक राज्य में कांग्रेस सरकार भी रही, अब ढाई साल से बीजेपी ने भी चुनाव नहीं कराए। यानी, 2023 से पहले मंडी चुनावी संभावनाएं खत्म होती दिख रही है। ऐसे में ग्रामीण नेताओं का संगठन व विधानसभा चुनाव में दखल बढ़ेगा।
दूध का जला फूंक-फूंककर पीया जाता है। ऐसा ही मध्यप्रदेश की राजनीति में हो रहा है। भाजपा के ऑपरेशन लोटस से कमलनाथ सरकार गिरी। इसके बाद सक्ते में आई कांग्रेस ने निकाय व पंचायत चुनाव में इसी कहावत को चरितार्थ किया। नतीजा यह रहा कि, त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में जनपद, जिला पंचायत से लेकर सरपंच तक के वार्डों में इस बार तुलनात्मक कांग्रेस को दमदार सफलता मिली, जो पहले के मुकाबले अधिक रही। भाजपा शासन में चुनाव होने के चलते और दलगत राजनीति आधार पर ये चुनाव ना होने के चलते अध्यक्ष पदों पर भले ही भाजपा काबिज हो गई लेकिन सच्चाई है कि जिपं सदस्य और जनपद सदस्य से लेकर सरपंच, पंच पदों पर कांग्रेस मजबूती से उभरी है। इस तुलना में नगरीय निकाय में भाजपा का दम अधिक दिखा लेकिन कांग्रेस भी कम नहीं रही। कुल मिलाकर ग्रामीण क्षेत्र में कांग्रेस की उम्मीद जिंदा रही है, इस बात को बीजेपी ने भी महसूस किया है।
चुनाव टालने की इस बात को इसी से समझा जा सकता है कि ना तो कृषि मंडी को लेकर वार्ड परीसीमन हुआ ना ही वार्डों व अध्यक्ष पदों की आरक्षण प्रक्रिया। नाम बढ़ाने-घटाने पर भी काम नहीं हुआ। चुनाव की इस प्रक्रिया में ही तीन से चार माह का समय लग जाता है। ऐसे में पूरे आसार है कि अब मंडी चुनाव इस सरकार के शासन में नहीं होंगे। अभी एसडीएम प्रशासक के तौर पर पद संभाल रहे हैं। किसी भी राजनीतिज्ञ का अब सीधा दखल नहीं है।
ताजा स्थिति में अब विधानसभा चुनाव 2023 में सालभर से भी कम समय बचा है। ना केवल सत्तारूढ़ दल बीजेपी बल्कि कांग्रेस के कई नेता कृषि मंडी चुनाव को लेकर तैयारियों में है लेकिन अरमान अब तक अधूरे रहे हैं। 2023 में जो सरकार विधानसभा में चुनी जाएगी, उस वक्त ही चुनाव संभव हो पाएंगे। यही वजह है कि मंडी चुनाव से वंचित नेता विधानसभा दावेदारी को लेकर भी ताल ठोकते नजर आ सकते हैं।