मिशन 2023:  राहुल को अंडरएस्टीमेट करना कांग्रेस के लिए बड़ी भूल साबित हो सकती है 

 

आवरण कथा | विजय शुक्ला । 


विजयमत,भोपाल। मध्यप्रदेश में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं।  साल भर से कम का समय शेष रह गया है बावजूद कांग्रेस पार्टी के भीतर ही अलगाव की स्थिति नजर आ रही है। हाल यह कि एक ओर तो हाईकमान अपने एक नेता और उनके परिवार पर मेहरबानी पे मेहरबानी लुटाती चली जा रही है वहीं उन बड़े नेताओं को पूछा नहीं जा रहा है जिनके बिना 2023 में चुनावी नैया पार नहीं लगाई जा सकती। उस नेता का नाम है अजय सिंह राहुल जो पिछले पांच साल से अपनी ही पार्टी की उपेक्षा झेल रहे हैं। दिग्विजयसिंह की क्षमता के मुकाबले उन्हें अंडर एस्टीमेट ( कम आंकना) किया जा रहा है। 


मध्यप्रदेश मे रहने वाले मतदाताओं की राय यही है कि 2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी को सत्ता के दरवाजा खोलने में वाकई कोई चिन्ता है तो उसे वरिष्ठ नेता अजय सिंह राहुल को ड्राइविंग सीट पर बिठाने पर विचार करने की जरूरत है। अजय सिंह पांच बार विधायक रहे हैं और पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के पुत्र होने के नाते राज्य में उनकी राजनीतिक विरासत बहुत मजबूत है। नेता प्रतिपक्ष के पद पर रहते हुए अजय सिंह ने शिवराज सरकार को सड़क से लेकर विधानसभा सदन में कई मर्तबा कड़ी चुनौती दी थी। उनके पास पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजयसिंह की भांति कांग्रेस कार्यकर्ताओं की लंबी फौज है। इस कारण भाजपा का कोई बड़ा नेता अजय सिंह राहुल का नाम सीधे तौर पर लेने से बचता है क्योंकि उन्हें पता है यदि उनके नाम को उछाला जाएगा तो कांग्रेस के भीतर ताकत बढ़ती जाएगी। अजय सिंह कांग्रेस पार्टी के इकलौते ऐसे नेता कहे जाएंगे जिन्होंने भाजपा सरकार के पोषित उद्योगपति घरानों पर सदैव तीखे हमले किए हैं। कोई दोस्ताना रिश्ते नहीं निभाए फिर बात चाहे पूर्व मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा के करीबी खनिज कारोबारी सुधीर शर्मा की हो या अडानी,अम्बानी जरूरत पड़ने पर उन्होंने उन्हें सार्वजनिक रूप से घेरा इसीलिए ये सभी आर्थिक ताकतें अजय सिंह को मिलकर उन्हें हराने का अभियान चलातीं रहीं हैं। गृहक्षेत्र चुरहट विधानसभा चुनाव में उनकी पराजय के पीछे भाजपा कम वरन वही ताकते रहीं जिन्होंने भाजपा से हाथ मिला लिया था। सीधी-सिंगरौली जिले में संचालित कई आद्यौगिक कारखाने हैं जहां अजय सिंह राहुल गरीब,बेसहारा, मजदूरों की लड़ाइयां लड़ते रहे हैं यही बात उद्योगपतियों को ठीक नहीं लगती और वे अजय सिंह राहुल के खिलाफ सुनियोजित तरीके से खेला करते रहे हैं। अजय सिंह को पार्टी ने जब भी जिम्मेदारी दी उसे निभाने में उन्होंने अपने व्यक्तिगत रिश्तों की परवाह नहीं की। इतना ही नहीं उनके परिवार तक में टकराव की स्थिति पैदा की गई । बहन वीणा सिंह ने उनके विरुद्ध लोकसभा चुनाव तक लड़ा था। जाहिर है इन सबके पीछे राहुल से घबराने वाले लोगों का एक समूह पर्दे के पीछे से उनकी छवि खराब करने में लगा हुआ था। सीधी और सतना से कांग्रेस हाईकमान ने उन्हें लोकसभा चुनाव लड़ाया लेकिन अपनो की गद्दारी से वे हार गए। लेकिन हिम्मत कभी नहीं हारी। 

कड़ी मेहनत लाई रंग,निकाय चुनाव में दिखा दम 
आज स्थिति यह है कि न केवल चुरहट बल्कि सीधी लोकसभा क्षेत्र की जनता को इस बात का दुःख है कि उन्होंने एक प्रभावशाली नेता को चुनाव में वोट न देकर गलती की। मतदाताओं ने इस गलती को त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में सुधारते हुए चुरहट, सीधी, रामपुर नैकिन,मझौली, ब्यौहारी, खांड नगर आदि निकायों में कांग्रेस को भारी समर्थन देकर ताकत दी। चुरहट,सीधी,शहडोल, उमरिया, मानपुर नगर पालिका पर कांग्रेस ने कब्जा किया। रीवा नगर निगम महापौर पद पर ऐतिहासिक जीत दर्ज की। जनपद,जिला पंचायतों के चुनावों में भी पूरे विन्ध्य क्षेत्र में कांग्रेस के प्रदर्शन में काफी सुधार देखने को मिला है ।

दिग्विजय, कमलनाथ, भूरिया, अरुण अपने गृह निकायों में हारे लेकिन अजय ने कराई धमाकेदार वापसी 

अजय सिंह काँग्रेस पार्टी के अकेले ऐसे नेता हैं जो निकाय चुनाव में अपना गृहक्षेत्र और नगर पालिका चुनाव में कांग्रेस को जिताकर लाए वहीं वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह अपनी गृह नगर पालिका राघौगढ़ और राजगढ़ हार गए। प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ, सुरेश पचौरी,कांतिलाल भूरिया, अरुण यादव, अपने गृहक्षेत्र के निकायों को नहीं बचा पाए और हार गए। इतना ही नहीं यदि आंकड़ों पर गौर किया जाए तो नगरीय निकायों के चुनाव में सर्वाधिक अच्छे नतीजे विंध्य क्षेत्र के रहे हैं। अर्थात अजय सिंह राहुल की इस क्षेत्र में लगातार की जा रही मेहनत का रंग दिखाई दे रहा है। जानकारों का मानना है कि विधानसभा चुनाव 2023 में इस बार कांग्रेस का सबसे अच्छा प्रदर्शन विन्ध्य क्षेत्र में रहने के आसार हैं। फिलहाल, विन्ध्य क्षेत्र में विधानसभा की कुल 34 में 4 सीटें कांग्रेस के पास हैं लेकिन विन्ध्य कांग्रेस की सत्ता वापसी में इस बार बड़ी साझेदारी निभाने की स्थिति में दिखाई दे रहा है।2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को सर्वाधिक 31 सीटें ग्वालियर चंबल क्षेत्र से मिली थी इसलिए मप्र में कांग्रेस की सरकार बन पाई थी। इस जीत में ज्योतिरादित्य सिंधिया का रोल बहुत बड़ा था जिसे हाईकमान ने अनदेखा करते हुए कमलनाथ को मुख्यमंत्री पद से नवाजा और सिंधिया को दिग्विजयसिंह ,कमलनाथ ने मिलकर किनारे कर दिया । सिंधिया ने कांग्रेस सरकार गिराकर भाजपा को सत्ता दिलाकर अपनी ताकत का लोहा मनवा दिया। कांग्रेस हाईकमान ने सिंधिया को अंडर एस्टीमेट न किया होता तो सरकार न गिरती। कदाचित अजय सिंह राहुल के साथ भी हाईकमान का रैवेया सिंधिया जैसा दिख रहा है। उसे अजय सिंह राहुल को अंडर एस्टीमेट करने की भूल नहीं करनी चाहिए वरना उसे भविष्य में इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है। अजय सिंह एक लो प्रोफ़ाइल नेता कहे जाते हैं इसलिए वे बोलते कम और करते ज्यादा हैं। फिलहाल उनका पूरा ध्यान विंध्य क्षेत्र मे कांग्रेस को विधानसभा चुनाव के लिए मजबूती देने पर है। कमलनाथ को चाहिए कि वे उन्हें बराबरी के साथ लेकर चलें। इससे विंध्य ही नहीं पूरे प्रदेश में लाभ मिलेगा। दरअसल, अजय सिंह का प्रभाव केवल विंध्य क्षेत्र तक सीमित नहीं है बुंदेलखंड में भी उनका खास असर है। उनके समर्थक कई विधायक चुनाव जीतकर आये हैं। दिग्विजयसिंह की जगह हाईकमान ने यदि अजय सिंह को राज्यसभा में भेजा होता तो इसका फायदा उसे अधिक मिलता। 

दिग्विजय के परिवार तक सिमटी कांग्रेस- 
उन्हें हाईकमान को संगठन में बड़ी भूमिका देनी चाहिए थी वह भी उन्हें नहीं दी गई जो समझ से परे है। इसकी प्रमुख वजह दिग्विजयसिंह कहे जा रहे हैं क्योंकि यदि अजय सिंह को बड़ी भूमिका मिल जाती तो दिग्विजयसिंह कहाँ जाते ?  जबकि दिग्विजयसिंह के पुत्र जयवर्धन सिंह विधायक हैं । नाथ सरकार में कैबनेट मंत्री रहे हैं। कमलनाथ सरकार गिरने के पीछे की मुख्य वजह इसे ही माना जाता है। कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी ने दिग्विजयसिंह के बेटे को पहले विधानसभा टिकट दी उनके भाई लक्ष्मण सिंह और भतीजे प्रियव्रत को विधानसभा टिकट दी गई। जयवर्धन और प्रियव्रत कैबनेट मंत्री बनाये गए। कमलनाथ के मामले में भी ऐसा ही है वे खुद विधायक, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष तो बेटे नकुलनाथ छिंदवाड़ा से सांसद हैं। 
यानी दिग्विजय के घर तीन विधानसभा टिकटें गईं। और 2024 के लोकसभा चुनाव में दिग्विजय को भोपाल से प्रत्याशी बनाया गया। वे चुनाव हार गए । बाद में उन्हें राज्यसभा भेजने का निर्णय लिया गया। दिग्गी राज्यसभा सांसद और राष्ट्रीय महासचिव हैं  । वहीं अजय सिंह के पास कोई बड़ी भूमिका नहीं है। यह विसंगति सोची समझी साजिश कही जा सकती है। सरकार जाने पर कमलनाथ ने एक बार मीडिया से चर्चा में बातों ही बातों में कहा था कि विंध्य क्षेत्र धोखा न देता तो हमारी सरकार न गिरती। जिसका जवाब अजय सिंह ने भी दिया था। उन्होंने ऐसे बयानों से बचने की सलाह दी थी। बेशक अजय सिंह आज कांग्रेस पार्टी में उपेक्षित जीवन जी रहे हैं लेकिन उनकी ताकत को कम नहीं आंका जा सकता। भारतीय जनता पार्टी भी इस सच्चाई को मानती है। उसके नेता दबी जुबां से कहते हैं - अजय सिंह इस विधानसभा चुनाव में हमारे सामने एक बड़ी चुनौती होंगे। मप्र में कांग्रेस को सत्ता दिलाने का श्रेय कमलनाथ और दिग्विजय को दिया जाता है जबकि यह एक अधूरी सच्चाई है। हां,इन नेताओं की भूमिका अग्रणी अवश्य रही है परन्तु सम्पूर्ण नहीं है। 

कांग्रेस हाईकमान को चाहिए कि वह अजय सिंह जैसे दिग्गज नेता को सांगठनिक तौर पर कोई बड़ी जवाबदारी दे जिसका फायदा विधानसभा चुनाव में उसे मिल सकता है। जानकारों का कहना है कि दिग्विजयसिंह पर जरूरत से ज्यादा भरोसा कांग्रेस और कमलनाथ दोनों के लिए हानिकारक हो सकता है। कमलनाथ तो अपने बयानों में मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान तक पर बड़े हमले करने से झिझकते रहते हैं। उन्होंने शिवराज सरकार के खिलाफ विगत 3 वर्षों में कोई प्रादेशिक धरना,प्रदर्शन, गिरफ्तारी जैसे अभियान नहीं चलाए। जिसकी जरूरत है। बहरहाल, कांग्रेस हाईकमान को चाहिए कि वह कांग्रेस के दिग्गज नेता अजय सिंह के बारे में समय रहते कुछ ठोस निर्णय लेकर जिम्मेदारी दे।  अनदेखी किये जा रहे नेताओं में एक नाम पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव का भी है जो कांग्रेस में पिछड़े वर्ग का सबसे बड़ा चेहरा हैं। भाजपा की राजनीति का मूल ओबीसी पालिटिक्स है। हॉलांकि अब वह ट्राइबल पॉलिटिक्स की तरफ मुड़ चुकी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ओबीसी हैं । भाजपा ने  ब्राह्मण चेहरे के तौर पर वीडी शर्मा को प्रदेश अध्यक्ष बना रखा है । फग्गन सिंह कुलस्ते आदिवासी समाज से केंद्रीय मंत्री हैं। मप्र के गवर्नर भी जनजातीय वर्ग से आते हैं। क्षत्रिय वर्ग से नरेन्द्र सिंह तोमर केंद्रीय मंत्री हैं। विन्ध्य क्षेत्र से आने वाले अजय प्रताप सिंह राज्यसभा सांसद हैं। कुलमिलाकर देखा जाए तो 
भाजपा का जातीय समीकरण दुरुस्त है जबकि कांग्रेस इस मुद्दे पर होश गवाए चल रही है। उसे समय रहते होश में आने की जरूरत है। मप्र को लेकर हाईकमान का नजरिया ढुलमुल है। कांग्रेस हाईकमान ने नजरिया नहीं बदला तो उसका वही हाल होगा जैसा गुजरात,उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र में है। मप्र में पंद्रह महीने छोड़ दें तो साढ़े अठारह साल से भाजपा का राज चल रहा है। 

और अंत मे- दिग्विजयसिंह भला अब क्यों चाहेंगे कि अजय सिंह राहुल मुख्य पंक्ति में आएं । ऐसा हो गया तो फिर उनके बेटे का क्या होगा? 

(~ लेखक दैनिक विजय मत समाचार पत्र के प्रधान संपादक व जाने माने राजनीतिक विश्लेषक हैं)

न्यूज़ सोर्स : Vijay Mat