सास-बहू और देवरानी-जेठानी का एक साथ किया अंतिम संस्कार 


इंदौर । बीते गुरुवार को हुए इंदौर में बेलेश्वर महादेव मंदिर हादसे में पटेल नगर में रहने वाले 11 लोगों ने अपनी जान गंवा दी। शुक्रवार को मृतकों की अंतिम यात्रा निकलने का सिलसिला दोपहर तीन बजे से शुरू हुआ। 11 अर्थियां बारी-बारी निकली तो लोगों की आंखें छलक पड़ी। सभी लोग मंदिर के सामने वाली गली के रहने वाले थे। आंसु थमने का नाम नहीं ले रहे थे। माहौल ऐसा था कि लोग एक घर से अर्थी को उठाकर शव वाहन तक छोड़कर फिर दूसरे घर से अर्थी को कांधा देने पहुंच रहे थे। बारी-बारी सभी 11 अर्थियों को शव वाहन तक पहुंचाया गया। इसके बाद अंतिम सफर का कारवां मुक्तिधाम की तरफ रवाना हुआ। पीछे समाजजन के वाहन कतार में चल रहे थे। पटेल नगर में शुक्रवार सुबह से ही हलचल बढ़ गई थी। लोगों के चेहरे पर अपनों को खोने का गम साफ झलक रहा था। सुबह 9 बजे बाद अस्पताल से शव आने लगे तो अपने परिजनों के शव देखकर परिवार वालों का हाल बेहाल हो गया। दोपहर में समाज की धर्मशाला में 11 अर्थियां तैयार करने का सिलसिला शुरू हुआ। सभी अर्थियों को पहले पटेल धर्मशाला लाकर एक साथ निकालने की तैयारी की गई। बाद में अर्थियों को लोडिंग से सभी घरों तक पहुंचाया गया। दोपहर तीन बजे सबसे पहले कस्तूरी बेन रमानी की अर्थी घर से निकली। लोगों ने शव वाहन में अर्थी रखकर विनोदभाई नकरानी की अर्थी को कांधा दिया। कुछ देर बाद रतनबेन रमानी की अर्थी उनके घर से निकली। हादसे में जान गंवाने वाली सास दक्षाबेन और बहू कनकबेन रमानी की अर्थी एक ही घर से उठी तो हर कोई सिहर उठा। कांधा देने वाले लोगों के हाथ-पैर कांप रहे थे। बारी-बारी से लोगों ने अपने को संभालते हुए लक्ष्मीबेन दीवानी, गोमतीबेन पोकर, पुष्पाबेन पोकर, प्रियंकाबेन पोकर, जनबाई नथानी, शारदाबेन पोकर की अर्थियों को कांधा देकर शव वाहन में रखा। पटेल नगर में जेठानी पुष्पा पोकर और देवरानी प्रियंका पोकर का हादसे में देहांत हो गया था। जब अस्पताल से उनके शव घर लाए गए, तो परिजनों ने तय किया कि एक घर से ही अंतिम यात्रा निकालेंगे। जेठानी पुष्पा पोकर का शव भी देवरानी प्रियंका पोकर के घर पर ही रखा गया। यहीं से दोनों की अंतिम यात्रा निकली। इसके अलावा सास दक्षाबेन और बहू कनकबेन रमानी की शवयात्रा एक साथ निकली। पटेल नगर से 11 मृतकों को अंतिम संस्कार के लिए रीजनल पार्क मुक्तिधाम ले जाया गया। यहां एक साथ सभी चिताएं तैयार कर रीति-रिवाज के साथ अंतिम संस्कार किया गया। सभी चिताओं को एक साथ अग्नि दी गई। अग्नि की लपटें आसमान की तरफ उठ रही थी और लोग अपनों के ओझल होने से गमगीन थे। अग्नि के तेज होने के बाद भी लोग दूर नहीं हो रहे थे। हाथ जोड़कर लोग टकटकी लगाए अपनों की चिताएं देखते रहे।