वाराणसी। आजादी प्राप्ति के बाद देश में 1951-52में प्रथम लोकसभा चुनाव कराया गया था। उस समय देश के पहले मुख्य चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन थे। आजादी के बाद देश में हुए लोकसभा चुनाव में वाराणसी संसदीय सीट कभी कांग्रेस, कभी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी )तो कभी भाजपा या जनतादल के हाथ रही है।
1952 में हुए लोकसभा चुनाव में वाराणसी के लोकप्रिय नेता, स्वतंत्रता सेनानी, संस्कृत के विद्वान  एवं नेहरू जी के प्रिय ठाकुर रघुनाथ सिंह ने पहला लोकसभा चुनाव 30,0000 (तीनलाख )वोटो से जीती थी।नेहरू जी के अति करीबी  एवं जमीनी नेता होने के कारण वाराणसी ने 1957और 1962में उन्हें अपना सांसद चुना था।


वाराणसी में कांग्रेस की पकड़ धीरे -धीरे कमजोड़ होती गयी 


नेहरू जी के निधन के बाद वाराणसी में कांग्रेस की पकड़ धीरे -धीरे कमजोड़ होती गयी और जनसंघ एवं भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का दबदबा बढ़ता गया,परिणामतः 1967 के लोकसभा चुनाव में भाकपा के सत्यनारायण सिंह विजयी हुए।1971में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की पुनः वापसी हुई और प्रमुख शिक्षाविद राजाराम शास्त्री चुनाव जीते।
1975 में इंदिरा जी द्वारा देश में लगायी गयी इमरजेंसी के कारण कांग्रेस को बुरा परिणाम भुगतना पड़ा और 1977 में हुए लोक सभा चुनाव में कांग्रेस को पूरे देश में पराजय का सामना करना पड़ा और वाराणसी से जनता पार्टी से  बलिया की धरती के युवा तुर्क कहे जाने वाले चंद्रशेखर विजयी हुए। इमरजेंसी के बाद कोंग्रस ने अपनी राजनितिक जमीन को धीरे धीरे सिंचित किया और 1980 में हुए लोक सभा चुनाव में औरंगाबाद हाउस से इंदिरा जी के अति कराबी पंडित कमला पति त्रिपाठी के सर पर विजय का शेहरा बंधा। कांग्रेस पार्टी 1980 के बाद भी वाराणसी में अपना दबदबा कायम रखा और1984 में  कांगेस पार्टी ने पिछड़ो के नेता श्यामलाल यादव को वाराणसी से लड़ाया और वाराणसी की धरती ने पुनः कांग्रेस के प्रति अपना विश्वास जताया और श्यामलाल यादव को विजयी घोषित कर दिल्ली की संसद में भेजा।श्यामलाल यादव के नेतृत्व में वाराणसी में कांग्रेस पुनः कमजोड़ हुई और 1989 में हुए लोकसभा चुनाव में पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री के बेटे अनिल शास्त्री ने जनता दल से विजय दर्ज की।
1989 के बाद बाबरी मस्जिद आंदोलन तेज हुआ परिणामस्वरुप 1991में हुए लोकसभा चुनाव में वाराणसी के बाहर के प्रत्याशी आई पी एस अधिकारी श्रीश चंद्र दीक्षित भाजपा से चुनाव जीते। बाबरी मस्जिद आंदोलन का प्रभाव ऐसा रहा की 1996 और फिर 1998 में हुए लोकसभा चुनाव में वाराणसी के शंकर प्रसाद जायसवाल भाजपा के टिकट से सांसद निर्वाचित हुए, जिन्हे राजनितिक गालियारे में कोइ नहीं जानता था।
वर्ष 2004 में हुए लोक सभा चुनाव में कांग्रेस  का पाशा पलटा और बी एच यू की छात्र रजनीति में चमके राजेश कुमार मिश्रा ने वाराणसी लोकसभा सीट से जित हासिल कर थोड़ा जान डाल दी, वो बात दीगर है की राजेश मिश्रा हाल ही में कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिए है। वाराणसी में 2009 में हुए लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा का दबदबा कायम है। वर्ष 2009 में हुए लोक सभा चुनाव में बाबरी मस्जिद एवं रामजन्म भूमि आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाने वाले भाजपा के कद्दावर नेता मुरलीमनोहर जोशी ने 185911मत से विजयी रहे और उनके प्रतिद्वंदी सपा नेता अजय राय को जहाँ  123874 मत प्राप्त हुए वही कांग्रेस के राजेश मिश्रा को 66386 मत पाकर संतोष करना पड़ा। इसी प्रकार 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में 381022 वोट पाकर देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विजय हाशिल की जब कि उनके निकटतम प्रतिद्वंदी आप के अरविन्द केजरीवाल को  209238 तथा कांग्रेस के अजय राय को 75614 मत हाशिल हुए थे। वर्ष 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में वाराणसी ने पुनः नरेन्द्र मोदी पर विश्वास जताया और रिकॉर्ड मतों 674604 से विजय दिलायी,वही सपा कि शालिनी यादव को 195159 मत पाकर संतोष करना पड़ा जब कि तीसरे नम्बर पर कांग्रेस के अजय राय 152548 पर सिमट गए।


तीसरी बार जीत हासिल कर हैट्रिक बनाने की तैयारी 


2024 में होने वाले लोक सभा चुनाव में मोदी वाराणसी से तीसरी बार जीत हासिल कर हैट्रिक बनाने की तैयारी में है, जब की इंडिया गठबंधन से अजय राय के पुनः इसबार भी लड़ने की संभावना जताई जा रही है। वाराणसी संसदीय सीट से बसपा ने मुस्लिम प्रत्याशी अतहर जमाल लारी को मैदान में उतारने की घोषणा  किया है। वैसे राजनीत के अंदर खाने में हो रही चर्चा की माने तो अजय राय अपनी पुरानी राजनितिक पार्टी भाजपा का कभी भी हाथ थाम सकते है, यदि ऐसा हुआ तो वाराणसी से नरेन्द्र मोदी की निर्विरोध जीत की प्रबल संभावना हो सकती है।