अस्सी के दशक में हिंदी सिनेमा का नायक जब समाज की बेहतरी के लिए काम करता तो उसे रोकने के लिए कई असामाजिक तत्व एकजुट हो जाते थे। नायक को परेशान करने और दो-दो हाथ करने से भी गुरेज नहीं करते थे। जब नायक आगे बढ़ता, उसे प्रपंचों में फंसाया जाता। उस पर लांछन लगाए जाते। मंशा केवल यही कि नायक अपने अच्छे मकसद में कामयाब न हो सके। समाज के वंचितों और उपेक्षितों को सहूलियत न मिल सके। हिंदी सिनेमा के शुरुआती दिनों की फिल्में दो बीघा जमीन, मदर इंडिया, नया दौर आदि इसी कथानक के आसपास तो बनी है, जहां वंचितों को विकास के रास्ते पर लाने के लिए नायक का विरोध होता है।

करीब चार दशक बाद भले ही सिनेमा की कहानियों में यह नहीं दिखता, लेकिन इन दिनों भारतीय राजनीति में यही कहानी दोहराई जा रही है। देश को एक सूत्र में पिरोने के लिए जो भगीरथी प्रयास पहली बार देश के पहले गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने किया था, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उसी सपने को साकार करने के पंच प्रण का सूत्र लाल किले के प्राचीर से दे चुके हैं। एक ओर पीएम मोदी एक भारत, श्रेष्ठ भारत का सपना देख रहे हैं लेकिन जनता को लग रहा है कि प्रधानमंत्री के इसी मिशन से विपक्षी राजनीतिक दल परेशान हैं। 28 दलों का भानुमती का कुनबा जैसे बना उसे सबने देखा ही है, कैसे साजिश के तहत उसे नाम दिया गया -  I.N.D.I.A.  

I.N.D.I.A को विकास पसंद नहीं

आम जनता आपसी बोलचाल में इस सच्चाई को समझती है कि ये 28 दल केवल देश में हो रहे विकास कार्यों का विरोध करने के लिए एक साथ आए हैं। इस कुनबे में अधिकांश सदस्य सत्ता सुख भोग चुके या भोग रहे हैं, लेकिन सत्ता में रहने के दौरान जनता की भलाई के लिए किए गए कार्यों का रिपोर्ट कार्ड इनके पास नहीं है। हाथ कंगन को आरसी क्या जैसी कहावत को केवल पीएम मोदी का काम चरितार्थ करता है। 

नारी तू नारायणी

‘यत्र नार्युस्ते पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता’ को चरितार्थ करते हुए भाजपा सरकार ने महिलाओं की समृद्धि और सशक्तिकरण के लिए कई काम किए हैं। उज्ज्वला योजना ने महिलाओं को धुएं के गुबार से निजात दिलाई। मध्य प्रदेश सरकार ने भी लाड़ली बहना योजना, लाड़ली लक्ष्मी योजना, मुख्यमंत्री सीखो कमाओ योजना, मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना जैसी योजनाओं के जरिए महिलाओं की जिंदगी संवारने का काम किया है। लाड़ली लक्ष्मी योजना में 46 लाख से अधिक बेटियां लखपति हो चुकी हैं। 

संस्कृति से जुड़ता भारत 

सांस्कृतिक और सामाजिक रूप से सशक्तिकरण के लिए पीएम मोदी ने उत्तर प्रदेश में काशी विश्वनाथ कॉरिडोर जनता को समर्पित किया था। साल 2022 में मध्य प्रदेश के उज्जैन में भी भव्य महाकाल लोक तैयार होने के बाद से यहां देश-विदेश से सनातनी आ रहे हैं। देश को सांस्कृतिक रूप से एक करने के लिए मध्य प्रदेश की डबल इंजन वाली सरकार लगातार काम कर रही है। हाल ही में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने निवाड़ी जिले के ओरछा में श्रीराम राजा लोक की आधारशिला रखी है। ओंकारेश्वर में आदि शंकराचार्य को समर्पित एकात्म धाम का उद्घाटन भी जल्द ही होने वाला है। 

धर्म और रोजगार का मणिकांचन योग

उज्जैन में महाकाल लोक जैसे कॉरिडोर ने स्थानीय अर्थव्यवस्था को जबरदस्त उछाल दिया है। स्थानीय स्तर पर रोजगार के नए अवसरों से काशी और उज्जैन चमक उठे है। महाकाल लोक के कारण इंदौर एयरपोर्ट पर यात्रियों की संख्या में वृद्धि हुई है। प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार के नए द्वार खुल रहे हैं। 

डबल इंजन सरकार का असर 

यह मध्य प्रदेश की डबल इंजन सरकार के कामकाज का ही असर है कि एक ओर कांग्रेस के नेता कई राज्यों में सनातन का विरोध कर रहे हैं, तो राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री श्री कमलनाथ मजबूरी में ही सही सनातन के साथ दिखाई दे रहे हैं। हालांकि जनता को कमलनाथ में आए बदलाव के पीछे राजनीतिक लोभ जरूर नजर आ रहा है। लेकिन मध्य प्रदेश में सीएम शिवराज जिस प्रकार योजनाओं को जनता के बीच लेकर जा रहे हैं और प्रधानमंत्री के एक भारत, श्रेष्ठ भारत में अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर रहे हैं, उसे जनता सकारात्मक रूप से ले रही है।

आदिवासियों को पूरा हक, वंचितों को अधिकार 

आदिवासियों की बेहतरी के लिए जनजातीय विकास विभाग लगातार काम कर रहा है। अब भगवान बिरसा मुंडा जयंती (15 नवंबर) को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाया जाने लगा है। मध्य प्रदेश में बैगा और कोल समाज की बेहतरी के लिए बीते दशक में कई विकास योजनाओं पर काम हुआ है। हाल ही में सागर में पीएम मोदी ने संत रविदास के नाम पर भव्य मंदिर और विकास परियोजनाओं की घोषणा की। देश के सभी अनुसूचित जाति और जनजातियों को उनका पूरा अधिकार दिया जा रहा है। 

भारत बनाम टीम I.N.D.I.A.

क्रिकेट के मैदान पर जब ब्लू जर्सी में टीम इंडिया उतरती है, तो हर कोई 'भारत माता की जय' कहकर हौसला बढ़ाता है, तिरंगा लहराता है। चर्चा है कि अब देश का नाम भारत होगा। संसद के विशेष सत्र में भी इसकी उम्मीद जताई जा रही है। लेकिन जैसे ही भारत नाम सामने आया, कांग्रेस की अगुवाई में 28 दलों वाला I.N.D.I.A. उस 'भारत' का ही विरोध करने लगे, जो भारत 140 करोड़ नागरिकों का प्रतिनिधित्व करता है। साफ है कि I.N.D.I.A. भारत के मूल की बजाय अंग्रेजी इंडिया के हितैषी दिखाई पड़ रहे हैं।