पटियाला हाउस कोर्ट ने यूएपीए के तहत 9 आतंकियों पर तय किए आरोप
नई दिल्ली । प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश धर्मेश शर्मा ने कहा कि जब तक कि आतंकवादी कृत्यों को करने के संबंध में कोई सामग्री न पेश की जाए तब तक विशेष धार्मिक दर्शन वाले जिहादी साहित्य को रखना अपराध नहीं होगा। अदालत ने कहा कि सिर्फ ऐसे साहित्य को रखना अपराध नहीं करार दिया जा सकता, क्योंकि इस तरह के साहित्य को कानून के किसी प्रविधान के तहत प्रतिबंधित नहीं किया गया है। ऐसा प्रस्ताव संविधान के अनुच्छेद 19 द्वारा गारंटीकृत स्वतंत्रता और अधिकारों के खिलाफ है।
ओबैद समेत कई पर आरोप हुए तय
अदालत ने यह टिप्पणी आरोपित ओबैद हामिद मट्टा पर यूएपीए की धारा 2 (ओ) और 13 के तहत आरोप तय करते हुए की। अदालत ने कहा कि सिर्फ इसलिए कि मट्टा कुछ कट्टर इस्लामी साहित्य की तलाश कर रहा था या उसे पढ़ रहा था। यह किसी भी अपराध को करने के बराबर नहीं है। हालांकि, वह गैरकानूनी गतिविधियों के कमीशन में शामिल था और इसलिए यूएपीए अधिनियम की धारा 13 के साथ धारा-2 (ओ) के तहत उसने अपराध किए हैं।
इन आतंकियों पर हुए आरोप तय
ओबैद मट्टा के अलावा अदालत ने केरल, कर्नाटक व कश्मीर से जुड़े नौ आरोपितों मुशाब अनवर, रीस रशीद, मुंडादिगुट्टू सदानंदानंद मारला दीप्ति, मो. वकार लोन, मिजा सिद्दीकी, शिफा हारिस, ओबैद हामिद मट्टा और अम्मार अब्दुल रहिमन के खिलाफ भारतीय दंड सहिता की धारा-120-बी व यूएपीए की धारा 2 (ओ), 13, 38 और 39 के तहत आरोप तय किए।
वहीं, अदालत ने 26 वर्षीय कश्मीरी युवक मुजमिल हसन भट को मामले के सभी आरोपों से बरी कर दिया। अदालत ने कहा कि भट के खिलाफ ऐसा कोई सुबूत नहीं है कि उसने आइएस सदस्य होने का दावा किया या फिर गतिविधियों को आगे बढ़ाने के लिए कुछ भी किया। अदालत ने कहा कि आरोपित भारतीय सैनिकों या आइएस के गुर्गों के स्वयंभू माड्यूल होने का दावा कर रहे थे और इस तरह प्रतिबंधित संगठन के उद्देश्य को आगे बढ़ाने के लिए सभी प्रयास कर रहे थे।