क्या है महिला आरक्षण बिल, जानिए इसका इतिहास, सबसे पहले कौन लाया था प्रस्ताव
नई दिल्ली । महिला आरक्षण विधेयक को लेकर एक बार फिर देश में चर्चा गर्म है। कहा जा रहा है कि महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण देने वाला बिल किसी भी वक्त लोकसभा में पेश किया जा सकता है। संविधान का 108वां संशोधन विधेयक 2008 राज्य विधान सभाओं और संसद में महिलाओं के लिए सीटों की कुल संख्या का एक तिहाई (33%) आरक्षित करने का प्रावधान करता है। विधेयक में 33% कोटा के भीतर एससी, एसटी और एंग्लो-इंडियन के लिए उप-आरक्षण का प्रस्ताव है। इस मुद्दे पर पहले राजनीति हो चुकी है। कई दलों ने इसी मुद्दे पर बिल का विरोध किया था। महिला आरक्षण का यह बीज पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने बोया था। राजीव गांधी ने मई 1989 में ग्रामीण और शहरी स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिए एक तिहाई आरक्षण के लिए संविधान संशोधन विधेयक पेश किया था। विधेयक लोकसभा में पारित हो गया था, लेकिन सितंबर 1989 में राज्यसभा में पारित होने में विफल रहा।
संसद में महिला आरक्षण बिल का इतिहास
12 सितंबर 1996 को तत्कालीन देवेगौड़ा सरकार ने पहली बार संसद में महिलाओं के आरक्षण के लिए 81वां संविधान संशोधन विधेयक लोकसभा में पेश किया। विधेयक को लोकसभा में मंजूरी नहीं मिलने के बाद इसे गीता मुखर्जी की अध्यक्षता वाली संयुक्त संसदीय समिति के पास भेजा गया। मुखर्जी समिति ने दिसंबर 1996 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। हालांकि, लोकसभा भंग होने के साथ विधेयक समाप्त हो गया।
अटल बिहारी वाजपेयी ने भी की थी कोशिश
दो साल बाद अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने 1998 में 12वीं लोकसभा में महिला आरक्षण विधेयक को आगे बढ़ाया। हालांकि, इस बार भी विधेयक को समर्थन नहीं मिला और यह फिर से निरस्त हो गया। बाद में इसे 1999, 2002 और 2003 में वाजपेयी सरकार के तहत फिर से पेश किया गया, लेकिन कोई सफलता नहीं मिली।
पांच साल बाद, मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार-1 ने 6 मई 2008 को इसे राज्यसभा में पेश किया। 9 मार्च 2010 को विधेयक राज्यसभा में पारित हो गया। विधेयक को लोकसभा में कभी विचार के लिए नहीं लाया गया और अंततः 2014 में लोकसभा भंग होने के कारण यह विधेयक खत्म हो गया था।