जन्मदिवस विशेष: - 

बेमिसाल, बेजोड़ स्ट्रेट फॉरवर्ड लीडर हैं अजय सिंह राहुल, 


इंट्रो:   छः बार विधानसभा चुनाव जीतने वाले अजय सिंह 2023 मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर मीडिया की सुर्खियों में भले नहीं हैं लेकिन कांग्रेस को सत्ता दिलाने में इस बार उनकी भूमिका प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ से कम नहीं होगी। सत्ता संघर्ष की कसौटी पर विन्ध्य क्षेत्र में अपने अथक परिश्रम से उन्होंने कांग्रेस को भाजपा की बराबरी पर लाकर खड़ा कर दिया है। यह अलग बात है कि  सबसे  बुरे दौर में  सत्ता के विरुद्ध जोरदार लड़ाई लड़ने वाले इस कद्दावर नेता को हाईकमान ने संगठन में महत्वपूर्ण भूमिका से वंचित रखा ।  वे आजकल के नेताओं की तरह नौटंकी नहीं करते और  न जुमलेबाजी। 


विजय शुक्ला  की कलम से -

वर्ष 2018 विधानसभा चुनाव के पूर्व एक बार मैंने अजय सिंह राहुल से पूछा था यदि मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी तो वे कौन सा मंत्रालय लेना चाहेंगे तब उन्होंने हंसते हुए कहा था वित्त मंत्रालय।  2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की सरकार तो बन गई लेकिन दुर्भाग्य से अजय सिंह चुरहट सीट से हार गए। राहुल भैया के नाम से सबके चहेते अजय अर्थशास्त्र से गोल्ड मेडलिस्ट हैं।  
विंध्य क्षेत्र के इस कद्दावर नेता की हार ने पक्ष-विपक्ष सबको हिलाकर रख दिया।
  भाजपा की ऐसी लहर चली कि कांग्रेस को चित्रकूट, सतना,अनूपपुर, पुष्पराजगढ़ और कोतमा छोड़कर बाकी 29 सीटों पर पराजय का सामना करना पड़ा। 
अजय सिंह चुरहट से छः बार विधायक निर्वाचित हुए लेकिन 2018 में उन्हें भाजपा के शारदेन्दु तिवारी ने हराया। दरअसल, यह हार भाजपा की एकजुटता और कांग्रेस के भीतर की गुटबाजी की देन थी वरना अजय सिंह कभी नहीं हारते।
 यदि वे चुनाव जीतते तो निःसंदेह मध्यप्रदेश राज्य के मुख्यमंत्री पद के सबसे प्रबल दावेदार बनकर उभरते । यही बात कांग्रेस के कई नेताओं को परेशान किये हुए थी। 
खैर,किस्मत कमलनाथ के साथ थी इसलिए वे वरिष्ठ नेता दिग्विजयसिंह की मदद से मुख्यमंत्री बने। हालाँकि वे केवल 15 महीने  इस पद पर रह पाए। मुझे यह कहने में रत्तीभर भी संकोच नहीं है कि कांग्रेस सरकार अपने कर्मों से गिरी। भाजपा ने तो बहती गंगा में हाथ धोकर सरकार बनाई ।  पन्द्रह साल जब कांग्रेस विपक्ष में होकर संघर्ष करती थी उस वक्त अजय सिंह की  भाजपा के खिलाफ आक्रामता देखने लायक होती थी। तब प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव और अजय की जोड़ी ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं को कभी टूटने नहीं दिया। कई बड़े आंदोलन और सत्ता विरोधी अभियान देखने को मिले। विडम्बना रही कि अजय सिंह कांग्रेस की लड़ाई को जब शिखर पर लेकर पहुंचते तभी उन्हीं की पार्टी के कुछ सहयोगियों के षड़यंत्र से उनकी धार कुंद पड़ जाती । विधानसभा में बतौर नेता प्रतिपक्ष लाए गए अविश्वास प्रस्ताव में अजय सिंह की लाजवाब रणनीति ने भाजपा सरकार की गर्दन इतनी जोर से पकड़ ली थी कि उसे अपना गिरेबां बचाने के लिए कोई मार्ग दिखाई नहीं दे रहा था तभी भाजपा ने कांग्रेस विधायक चौधरी राकेश सिंह को अपने  पाले में मिलाकर अविश्वास प्रस्ताव की धज्जियाँ उड़ाकर रख दी। 
विधानसभा सदन में अजय सिंह के प्रामाणिक तर्कपूर्ण धारदार हमले ने सरकार की नींद छीन ली थी। सदन में कांग्रेस विधायकों में उनके कार्यकाल में गजब का अनुशासन दिखाई देता। 
उनकी राजनीतिक पृष्ठभूमि वैसे तो उनके पिता और राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले वरिष्ठ नेता पूर्व मुख्यमंत्री  स्व अर्जुन सिंह की देन रही है  लेकिन उन्होंने अपनी योग्यता से खुद को मध्यप्रदेश की राजनीति में स्थापित किया है। आज भी उनसे मिलने वालों की भीड़ यह बताती है कि उनका रुतबा और जलबा कहीं से कम नहीं हुआ है। 
सीधी -चुरहट विधानसभा देश की हाईप्रोफाइल लोकसभा सीटों में गिनी जाती है। चुरहट से अर्जुन सिंह ने भी कई बार चुनाव लड़कर जीत हासिल की। विन्ध्य क्षेत्र  की राजनीति ब्राह्मण बनाम ठाकुर बनाम पिछड़ा रही है।  नेता प्रतिपक्ष के रूप में उनकी पारी ऐतिहासिक रही। सदन के भीतर मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान पर उन्होंने जितने तीखे प्रहार किए कांग्रेस का कोई दूसरा नेता कर ही नहीं सकता। विधानसभा के भीतर मुख्यमंत्री को उनके तार्किक हमलों से कई बार असहज स्थिति में सबने देखा । मुख्यमंत्री के जिन नजदीकी धनकुबेरों के नाम अजय ने सदन में लिए दूसरे सोच नहीं सकते। भाजपा राज में हुए व्यापमं कांड, अवैध खनन, भ्रष्टाचार के अनेकों मुद्दे उठाकर उन्होंने मंत्रियों की नींद उड़ाकर रख दी थी। 
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष प्रभात झा यदि दूसरी बार अध्यक्ष नहीं बन पाए तो उसकी वजह अजय ही थे। उन्होंने मुद्दों और मूल्यों पर आधारित राजनीति की। बदले में भाजपा सरकार ने उन्हें पटखनी देने में पूरी ताकत झोंक डाली। 2018 विधानसभा चुनाव से पूर्व कलेक्टर दफ्तर आधी रात तक सिर्फ यही कागज खोजते रहते थे कि अजय के खिलाफ कोई शिकायत मिल जाए। 

बहरहाल, अजय सिंह राजनीति के उन धुरंधरों में हैं जो कभी हार नहीं मानते। पांच साल बिना किसी पद पर रहकर भी उनकी राजनीतिक धमक,चमक और दबदबा कायम है। उनका जलवा बरकरार है। विधानसभा चुनाव हारने के बाद उन्होंने बिना समय गंवाए भाजपा के खिलाफ मोर्चा संभाला। समूचे विन्ध्य क्षेत्र में पार्टी कार्यकर्ताओं में जान फूंकते रहे। इसका बड़ा असर त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में देखने को मिला जब कांग्रेस पार्टी ने रीवा नगर निगम समेत कई निकायों पर अपनी प्रचंड बहुमत से जीत दर्ज कराई। जिसमें चुरहट,सीधी निकाय भी शामिल है। यह उन्हीं की मेहनत का असर है कि कल तक कमलनाथ की नजर में धोखेबाज कमजोर विन्ध्य क्षेत्र 2023 के चुनाव में कांग्रेस की सत्ता पाने की संभावना की  सबसे बड़ी उम्मीद नजर आने लगा है। 

जो कहते हैं उस पर अडिग रहते हैं-

अजय सिंह के बारे में बहुत से लोगों की धारणा यह है कि उनसे मिलना मुश्किल होता है वे कड़क मिजाज वाले ऐसे नेता हैं जिनके भीतर कुंवर साहबों वाली ठसक  है। यह बात बिल्कुल उल्टी है।  हकीकत यह है कि अजय सिंह को गोलमोल जवाब देना नहीं आता। सही को सही, गलत को गलत कहने में हिचकते नहीं हैं। वर्तमान राजनीति में आत्मसम्मान को बचाए रखना बहुत कठिन काम होता है क्योंकि नेता को लचीला होना ही पड़ता है। जनता को गुमराह करना पड़ता है। झूठे वादे करने पड़ते हैं। लोगों को उल्लू बनाना पड़ता है। अजय सिंह को यह सब पसंद नहीं है। आत्मसम्मान उनके लिए सबसे बढ़कर है। मुझे आज भी इससे जुड़ी एक घटना याद है। जब वे नेता प्रतिपक्ष थे उनदिनों एक बड़े टीवी चैनल वाले उनसे मिलने सी 19 बंगले पर पहुंचे थे। उनके हाथ मे एक कार्ड था। वे उन्हें  चैनल ओपनिंग के उपलक्ष्य में इनविटेशन  देने आए थे। जैसे ही उन्होंने कहा भैया आपको हमारे चैनल लांचिंग प्रोग्राम में अध्यक्षता करनी है। उन्होंने यह कहकर मना कर दिया कि कल कार्यक्रम है और जब आपको कोई बड़ा नेता नहीं मिला तो यहां चले आए। माफ कीजिएगा फिर कभी जरूर आऊंगा। चैनल वालो ने उनसे देरी पर सॉरी बोलकर कई बार आग्रह किया लेकिन वे फैसला कर चुके थे। अजय सिंह का राजनीतिक दायरा विन्ध्य तक सीमित नहीं है ग्वालियर चंबल, बुंदेलखंड में उनके समर्थकों की बड़ी संख्या है। 

ऐसी ही दूसरा रोचक किस्सा है- 
एक अखबार के ऑटो शो में उन्हें आमंत्रित किया गया पर वे नहीं आए। उनकी करीबी रिश्तेदार की तबियत बिगड़ने के कारण उन्हें बाहर जाना था। रात दस बजे की ट्रेन थी। अखबार मालिक फोन लगाते रहे औरो से लगवाते रहे लेकिन बात न बन सकी। लेकिन तभी रात्रि साढ़े नौ बजे  कार्यक्रम में पहुंचकर उन्होंने सबको हैरानी में डाल दिया। सम्बन्धो को निभाना कोई उनसे सीखे। अखबार के मालिक को अनसुना करने वाले राहुल भैया पॉलिटिकल रिपोर्टर के आग्रह को नहीं टाल पाए।  कहने का मतलब यह है कि उनकी नजर में कोई बड़ा छोटा नहीं है। 

आज पालिटिक्स के इस स्टार खिलाड़ी का जन्मदिन है। 
बधाई... शुभकामनाएं।

(फोटो गुढ़ (रीवा) विधानसभा क्षेत्र में जन आक्रोश रैली के दौरान दिग्गज कांग्रेस नेता अजय सिंह राहुल। मंच पर साथ मे प्रदेश महासचिव महेंद्र सिंह चौहान )

न्यूज़ सोर्स : विजय मत टीम