रायपुर ।   राज्य वनौषधि पादप बोर्ड किसानों से पहली बार सात औषधीय गुणों वाले पौधों की खेती कराएगा। बोर्ड के अधिकारियों ने इस औषधीय खेती से प्रति एकड़ धान से ज्यादा मुनाफा प्राप्त करने का दावा किया है। उनका दावा है कि धान की खेती से जहां प्रति एकड़ 38 से 45 हजार तक का मुनाफा होता है, वहीं औषधीय खेती से प्रति एकड़ 75 हजार से लेकर डेढ़ से दो लाख रुपये तक आय अर्जित होगी। औषधीय पौधे सैलेशिया, नन्नारी, मिल्क थिसल, पोदिना, यलंग-यलंग, सिट्रोडोरा और गुड़मार की खेती के लिए प्रदेश के विभिन्न् जिलों के मौसम पर शोध किया जा चुका है। वर्तमान में यह पायलट प्रोजेक्ट के रूप में चार-पांच एकड़ में होगी। बोर्ड का मानना है कि शुगर, बीपी, लीवर कैंसर आदि की दवाई के लिए इन औषधीय पौधों की खेती किसानों को मालामाल कर देगी। दक्षिण के राज्यों में इन पौधों की खेती से किसान प्रति एकड़ हजारों रुपये कमा रहे हैं। राज्य वनौषधि पादप बोर्ड के मुख्य कार्यपालन अधिकारी जेएसीएस राव ने बताया कि इन प्रजातियों के कृषिकरण से किसानों को 75 हजार रुपये से लेकर 1.50 लाख रुपये प्रति एकड़ की आमदनी हो सकती है।

50-50 एकड़ से करेंगे शुरुआत:

इन नई प्रजातियों के कृषिकरण का उद्देश्य पारंपरिक खेती के अतिरिक्त वाणिज्यिक कृषिकरण को बढ़ावा देना है। राज्य सरकार ने भी औषधीय खेती को बढ़ावा देने की घोषणा की है। प्रदेश में धान की फसल की कटाई के बाद सात अलग-अलग किस्मों को 50-50 एकड़ में रोपने की तैयारी है।

बीमारियों के लिए असरकारक हैं यह औषधियां

सैलेशिया: काष्ठीय लता वाली झाड़ी है। इसके जड़ का उपयोग मोटापा कम करने और मुख्य रूप से डायबिटीज रोग को दूर करने के लिए किया जाता है। बाजार में जड़ की कीमत 400 रुपये प्रति किलो कीमत।

पोदिना: यह फसल अक्टूबर माह में लगाया जाता है। चार से पांच माह के भीतर तैयार हो जाता है। प्रति एकड़ से लगभग 30 से 50 किग्रा तेल प्राप्त किया जा सकता है। किसान प्रति एकड़ 50 हजार रुपये तक की आय प्राप्त कर सकते हैं।

सिट्रोडोरा: सिट्रोडोरा एक वृक्ष प्रजाति है। चार से पांच वर्ष में जमीन से पांच फीट छोड़ कर तने को काट देने से आई पत्तियों का संग्रहण किया जाता है। इसका तेल एंटीसेप्टिक है।

गुड़मार: यह 20 से 25 वर्ष तक फसल देता है। गुड़मार को शुगर और लीवर टानिक भी कहा जाता है। इसके पत्तों से बनी दवाएं काफी कारगर होती हैं।

यलंग-यलंग: यह खुशबूदार पौधा है। इसका उपयोग इत्र बनाने के लिए किया जाता है। साथ ही इसके तेल का उपयोग उच्च रक्त चाप दूर करने के लिए किया जाता है। इसे छत्तीसगढ़ की जलवायु में आसानी से उगाया जा सकता है।

नन्नारी: यह एंटी आक्सीडेंट से भरपूर होता है। इसका उपयोग पेय के रूप में होता है। जड़ की कीमत प्रति किलो 350 रुपये हैं। पौधे 18 से 30 माह में तैयार हो जाता है। डेढ़ वर्ष में प्रति एकड़ छह लाख रुपये की आमदनी।

मिल्स थिसिल: यह बहु शाकीय पौधा है। इसके बीज से बने उत्पाद का उपयोग लीवर की बीमारियों को दूर करने के लिए किया जाता है। किसान प्रति एकड़ 50 से 60 हजार रुपये तक मुनाफा कमा सकते हैं।