देवभूमि उत्तराखंड अपने तीर्थस्थलों, नदियों के कारण पूजी जाती है. यहां कण कण में भगवान और पग पग पर मंदिर हैं. इनमें से कई का रोचक इतिहास और महत्व है. धर्म और योगनगरी ऋषिकेश भी अपने प्राचीन मंदिरों के लिए मशहूर है. उन्हीं प्राचीन मंदिरों में से एक है तारा माता का मंदिर. इसके बारे में कई मान्यताएं और कहानियां हैं.

तारा माता का मंदिर त्रिवेणी घाट के पास ही केवलानंद चौक पर है. Local 18 के साथ बातचीत में तारा माता मंदिर के महंत संध्या गिरी बताते ने बताया कि तारा माता को 10 महा विद्याओं में से द्वितीय महाविद्या के रूप में पूजा जाता है.

प्रज्जवलित जोत
महंत प्रकाश गिरी महाराज 1965 में बंगाल से प्रज्जवलित जोत के रूप में तारा माता को ऋषिकेश लाए थे. जिस स्थान पर यह जोत रखी गई, वहीं तारा माता की मूर्ति की स्थापना की गई और मंदिर बना. उनके बाद श्री बद्रीश, श्री हिमालय पीठाधीश्वर उत्तराखण्ड राजगुरु, ब्रह्मलीन श्री श्री 1008 श्री महंत श्री गोदावरी गिरि ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया और मंदिर को एक भव्य रूप दिया.

सबकी झोली भर दे मां
कहते हैं सच्चे मन से जो भी मांगों माता तारा उसे देती हैं. महंत संध्या गिरि बताते हैं यह मंदिर और इसका द्वार भव्य है. यहां सभी पर्व बड़े हर्षोल्लास से मनाए जाते हैं. लेकिन नवरात्रि और गुरु पूर्णिमा का खास महत्व है. अगर आप ऋषिकेश घूमने आए हुए हैं या फिर आने की सोच रहे हैं, तो इस मंदिर के दर्शन जरूर करें. तारा माता मंदिर के कपाट प्रातः 5 बजे खुलते हैं और रात 9 बजे बंद हो जाते हैं.